हरीतिमा हर दिशा

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** रचनाशिल्प:मात्रा भार -२८, १६-१२ पर यति, पदांत २२ वर्षा आई रिमझिम-रिमझिम,ले आई हरियाली।सावन के स्वागत में देखो,झुकी फलों से डाली॥ घटा घनन-घन घिर-घिर आए,चम-चम चपला चमके।झम-झम झरती झर-झर वर्षा,दामिनी दम-दम दमके।।हरीतिमा हर दिशा सुहाई,बहता जल नद-नाली।सावन के स्वागत में देखो,झुकी फलों से डाली॥ शैल सुहाने सुंदर शिखरों,से झर-झरने झरते।मधुर मनोहर मोहक … Read more

सावन बरखा

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** रचनाशिल्प:१४ मात्रा (४ ४ ४ २) सावन बरखा आई है।शीतल जल भर लाई है॥नभ में बादल छाए हैं।पानी भर कर लाए हैं॥ तड़-तड़ बिजली चमके है।सुनकर डर मन धड़के है॥भागे घर को बच्चे हैं।डर कर बैठे अंदर हैं॥ आहत हैं सब गर्मी में।मुदिता अब मन नरमी में॥बच्चे बूढ़े हरसाये।खुशियाँ सबके मन … Read more

पावस ऋतु आई

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** विगत ग्रीष्म पावस ऋतु आई, चारों ओर फुहार।रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी, बरसे जल की धार॥ गरज-गरज कर बादल बरसे, चमके बिजली तेज।प्यासी धरती प्यास बुझाए, बिछी सुमन की सेज॥हरे-भरे सब पेड़ सुहाए, फल की हो भरमार।रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी, बरसे जल की धार॥ विगत ग्रीष्म पावस ऋतु आई, चारों ओर फुहार।रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी, … Read more

गुरु युगबोध

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ******************************************* चमन जैसा,शिथिल कैसा,दूर पैसा,नव काम।गुरु सुहाये,ख़ूब भाये,जग जगाये,है धाम॥दोष मारे,गुण बुहारेे,दे सहारे,नव ज्ञान।है सुधा-सा,नित सधा-सा,जयघोष है,प्रतिमान॥ गुरु है फूल,हारे शूल,वह तो ईश,प्रवहमान।रच दे नया,नहिं बद रहा,जीवंत सब,नव शान॥गुरु गीतिका,संगीतिका,अनुराग वह,संवेग।आलोक गुरु,नव लोक गुरु,अंदाज़ नव,शुभ नेग॥ तिमिर हरता,भाव भरता,मांगलिक गुरु,आसान।विजय धरता,शिष्य बढ़ता,गुरु गतिशील,सम्मान॥गुरु विहँसता,जगत रचता,सृजनकारी,नव प्रीति।गुरु भगवान,नवल विहान,युग का सार,नव नीति॥ … Read more

मानसून

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** मानसून मँडराते आये,भीषण जलद साथ लाए।गरज-गरज कर घिरी घटाएं,जल की धारा बरसाए॥ चातक कब से तरस रहा था,जो प्यासा जल कण पाने।मोर पपीहा बन में डोलें,हैं नाचे संग निभाने॥नद-नाले भर आए मद में,सब कुछ बहा साथ लाए।गरज-गरज कर घिरी घटाएं,जल की धारा बरसाए॥ मानसून मँडराते आये,भीषण जलद साथ लाए।गरज-गरज कर घिरी … Read more

गुरु की महिमा

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश) ******************************************* गुरु हिमराज,गुरु अधिराज,गुरु का रूप,ज्यों ईश।गुरु आगार,सद साकार,गुरु के चरण,नित शीश॥गुरु नित वेद,नहिं हो खेद,मिले सुरवर,यह चाह।गुरु दिनमान,गुरु पहचान,गुरु से मिले,नव राह॥ गुरुवर नमन,दु:ख का हनन,खिलता चमन,वतन-मान।संत समान,नवल विहान,नहिं अभिमान,हिमवान॥गुरु-सा कौन,सब हैं मौन,गुरु की जीत,यह साँच।गुरु उजियार,सुख-संसार,गुरुवर-सार,लो बाँच॥ नभ बना जो,सिर तना जो,सुर सना जो,गुरु ताज।शिष्य के पल,करके सरल,मन हो … Read more

भर आई हरियाली

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** वर्षा की रिमझिम बूंदों से,भर आई है हरियाली।खेत, बाग, वन, चरागाह सब,लदे हुए फल तरू डाली॥ भरे खेत सब धान मदीरा,हरे-भरे हैं दालों से।लौकी, कद्द्दू, ककड़ी बेलें,लिपटी हैं तरु डालों से॥हरी-भरी सारी धरती है,नहीं आज कोई माली।खेत, बाग, वन, चरागाह सब,लदे हुए फल तरू डाली॥ वर्षा की रिमझिम बूंदों से,भर आई … Read more

सावन आया, अब आओ

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’अल्मोड़ा(उत्तराखंड) *************************************** ओ मेघा रे… रचनाशिल्प:मात्रा भार १६/१४, पदांत २२/ बरसे बदरा रिमझिम-रिमझिम,सावन आया अब आओ।कितने सावन बीत गए हैं,अब तो साजन आ जाओ॥ भीगी चुनरी भीगा तन-मन,भीग गया उपवन सारा।मोर पपीहा झूमे वन में,धरा का रंग उजियारा॥आज विरह में बीता सावन,अब तो प्रीतम घर आओ।कितने सावन बीत गए हैं,अब तो साजन आ … Read more

पिता आधार

आशा आजाद`कृति`कोरबा (छत्तीसगढ़) ******************************************* सत्य ही तो एक बस आधार है।हों पिता जिस पथ वहीं परिवार है॥ आस है विश्वास सुंदर भावना।दे सदा खुशियाँ हमें शुभ कामना॥नींव होते हैं पिता संस्कार है।हों पिता जिस पथ वहीं परिवार है॥ प्रेम अरु आशीष शुभ वरदान दे।शुभ पिता सबको सदा सम मान दे॥एकता समभाव निर्मल प्यार है।हों पिता … Read more

मन दौड़ता उस ओर क्यों ?

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** हो शीत चाहे हिम,भयानक ताप भीषण गर्जना।मन दौड़ता उस ओर क्यों,होती जहां है वर्जना।पथ पूर्व पूर्वज चल सरल,जो मार्ग निष्कंटक किया।काँटे चले ना मन अगर,कैसे करे नव सर्जना। डरता नहीं अंकुश से,मन भयभीत हो ना भर्त्सना।चढ़ सफलता के शिखर करता,विषाद न-हर्ष ना।है पार कंटक मार्ग के,उस भाव में नव खोज है।मन धीर … Read more