मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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चंचलता करें तांडव मन में,
अशांति का रुख जीवन में।
मगन हो रहा मन दीवाना,
मन का है चलचित्र सुहाना।
तन दिवस जो मन की माने,
ढूंढे मन हर नए नए बहाने।
चंचलता का आलम मन में,
अशांति का रुख जीवन में।
अपनी चीज न भाती जिसको,
सोचत कार्य जो न ही बस को।
चंचल मन करता मनमानी,
लगी लगन मन ने ज़िद ठानी।
खेल खिलाता जन-जन में,
अशांति का रुख जीवन में।
सत्य समझ जो मन बिगड़ा है,
चंचलता की ज़िद पे अड़ा है।
आँखों की हृया शर्म खो देता,
मनमानी को पग जब है देता।
न कमी छोड़ता चाहत में,
अशांति का रुख जीवन मेंll