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बदला हुआ बदलाव जीवन की राह

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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सामाजिक,राजनीतिक,आर्थिक और न्यायिक व्यवस्था में बदलाव की बात ही होनी चाहिए, पर इस अदृश्य महामारी ने तो सभी में बदलाव के मायने ही बदल दिए। आज चिंता,चर्चा,सोच, कार्यकलाप इसी को लेकर ही है। अभी तक इसके इलाज की कोई प्रमाणिक दवा नहीं खोजी जा सकी,बस सामाजिक दूरी,घर में रहना,हाथों को धोते रहना,मुख पट्टी लगाना,कुछ विशेष दवाईयों का प्रयोग एक हद तक ही कारगर है। अभी तक तो ऐसे ही चलते रहने के दौरान लगभग विश्व में करीब ३५ लाख लोग संक्रमित हैं,२.४० लाख लोग कालकवलित हो चुके हैं।
पूरी मानवता थर्रा उठी है,बड़ी-बड़ी महाशक्तियां घुटनों पर आ गई हैं,कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। हालात ये हैं कि प्राणी तो घरों में कैद हैं,गलियों में, बाजारों में,सड़कों में सन्नाटा है और जानवर सड़कों पर खुलेआम स्वछन्द घूम रहे हैं,पक्षियों की मधुर गूंज से आसमां चहचहा रहा है। साफ पर्यावरण, कोई धुंआ नहीं न ही कोई प्रदूषण,न सड़क दुर्घटना, किसी अदृश्य शक्ति ने हालात बदल दिए तो,प्रकृति के भी सुर बदल गए। इंसान ने बेपरवाह हो कर प्रकृति का दोहन किया,जंगल कटते रहे,प्रदूषण बढ़ता रहा,हर पल हर क्षण मौसम भी बदलते रहे,सभी मूक जानवर ही भोज्य पदार्थ हो गए। मानो महामारी ने तो बहाना बना कर इन्सान को बहुत कुछ सिखा दिया हो,प्रकृति ने अपनी महत्ता दिखा दी,जिसे नज़रअंदाज़ करना कई बार पहले भी महंगा पड़ चुका है। छोटे-छोटे सबक भी मिले,पर उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। अब इस बड़े सबक ने तो पूरे विश्व को ही हिला दिया है। इतने जबर्दस्त बदलाव हुए हैं और होते ही रहेंगे। बड़ी आर्थिक मंदी के आसार भी नजर आ रहे हैं। वर्तमान परिस्थिति तो ये हो गई है-
‘घर गुलज़ार,सूने शहर,बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई।
आज फिर जिंदगी महंगी और दौलत सस्ती हो गई।
किसी के गुज़र जाने के बाद शहर बन्द होना बहुत बार देखा है,मगर
कोई गुज़र न जाये इसलिये शहर को बंद होते पहली बार देखा है।
मौत के खौफ से साँसें भी छान कर लेने लगे,
कल तक जो कहते थे,साँस लेने की फुर्सत नहीं।’

कल तक घर में पड़े रहना निकम्मापन था,आज समझदारी की बात है। यह जिंदगी की ऐसी पहली दौड़ है,जिसमें रुकने वाला जीतेगा। सच तो ये है कि ईश्वर की दी हुई खूबसूरत धरती को हमने नरक ही बना दिया। सब-कुछ छोड़ कर उन्हीं के पास जाना है, ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की तरह रहने से ही सब ठीक होगा।
आज राष्ट्रों की सीमाएं टूट गईं,युद्ध के नगाड़े थम गए,आतंकी बंदूके खामोश हैं। बाहर मौत का खौफ है,अंदर उस पर मात पा जाने का एहसास,यही तो जीने की जिजीविषा है। इसी के बल पर ही हम हर कठिनाई को दूर कर पाते हैं। इसी बात को ही इंगित करती कविता-
‘जिंदगी के हर मोड़ पर,मैं जिंदगी से मिलता रहा,
जिंदगी मुझको मिली,मिल कर बहुत कुछ कह गई।
मुझको जिओ,जी भर कर जिओ,जिओ तो ऐसे जिओ,
बाद में जिंदगी भी कह उठे,जीने की कसक अभी भी रह गई।,

जीने की यह कसक ही तो इस महामारी से मुक्ति दिलाएगी। जब पक्का इलाज उपलब्ध ही नहीं है तो बचाव व सुरक्षा की बहुत आवश्यकता है। अब दवा और दुआ के बल पर ही विजय मिलेगी।
भारत में भी इस बीमारी का फैलाव पूरे देश में हो गया है,४० हज़ार संक्रमित हैं। लगभग १३०६ की मृत्यु हुई है,तो करीब ११००० ठीक भी हुए हैं। बस यह ठीक होते लोग तो ही हमारी सकारात्मक ऊर्जा हैं। अभी यह दौर थमने में समय लगेगा,हमें अपने को जीवन्त बनाए रखना है। घर से बाहर नहीं जा सकते तो क्या,अपने अंदर जा कर अन्तर्मुखी हो कर परम् सर्वशक्तिमान का ध्यान करो, इस विपदा से बाहर निकलने का रास्ता बनेगा। जब वो समय नहीं रहा तो ये भी नहीं रहेगा,अंधकार को चीर कर प्रकाश तो दैदीप्यमान अवश्य होगा। जल्द ही ठहरी जिंदगी में रवानी आ जाएगी,सब-कुछ पहले की तरह हो जाएगा,आनन्दप्रद,मंगलमय,सुखद,उत्साह से परिपूर्ण वातावरण में खुशियों से भरा मस्त और व्यस्त जीवन।

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैl जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैl आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैl हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैl आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैl सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैl आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैl १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैl प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैl इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैl आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंl प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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