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चीन,तू निश्चित मुंँह की खाएगा

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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अरे चीन तू समझ रहा कि ये खाला का बाड़ा है ?
जिस दिन अपनी फिरी खोपड़ी,तेरा समझ कबाड़ा है।

ये मत समझ तू ६२ है जो हम तुझसे डर जाएँगे,
अगर है दम तुझमें तो आजा नाक चने चबवाएंगे।

भरे हवा नापाक पाक में उसको क्यों उकसाता है ?
ऐसे पिद्दी से देशों का हमको डर दिखलाता है ?

नहीं जानता क्या तू भारत माँ वीरों की खान है,
वीर शिवा राणा प्रताप का कितना यहां सम्मान है।

भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु सभी दिलों में जिंदा हैं,
सुभाष,शेखर,अशफाक सभी तो भारतीय बाशिंदा हैं।

तू भारत की सीमा पर क्यों अपनी सड़क बनाता है,
अपने आयुध और सेनाएं क्यों तू यहाँ जमाता है।

‘कोरोना’ की आड़ में गर तू हमसे यूँ टकराएगा,
नहीं है भारत तुमसे कम,तू निश्चित मुंँह की खाएगा।

शेरों की सेना भारत की,चीर फाड़ खा जाएगी,
तेरी ये चालाकी सुन ले कोई काम न आएगी।

तुमने ये जो कोरोना इस दुनिया में फैलाया है,
दुनिया के हर देश को तुमने दुश्मन समझ बनाया है।

हमसे टकराने की गर तू सपने में भी सोचेगा,
ये निश्चित है विश्व पटल से चीन को अपने खो देगा॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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