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चीनी-हिन्दी भाई नहीं रहे

जीवनदान चारण ‘अबोध’  
पोकरण(राजस्थान) 
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पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित विश्व के २ महान देश,जिनका नाम लेते ही विश्व पटल पर स्थित जनमानस का ख्याल आता हैl
जनसँख्या से लबरेज विश्व के चोटी के राष्ट्र हर समय वैश्विक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले,लोगों को संकट से निपटने का पाठ पढ़ाते हुए सही पथ प्रदान करने वाले देश, आज एक-दूसरे से आँख मिलाने से कतराते हैंl चीन और भारत के संबंध बहुत पुराने हैंl दोनों के राजनीतिक रिश्तों में भले ही उतार-चढ़ाव आए हों,लेकिन सांस्कृतिक और धार्मिक आदान-प्रदान का सिलसिला बहुत ही पुराना हैl लगभग २००० वर्ष पहले बौद्ध धर्म और दर्शन चीन में भारत से आयाl ह्वेंगसांग जैसे यात्री समय-समय पर भारत जाकर बौद्ध पांडुलिपियाँ और और संस्कृत में लिखे ग्रंथ लेकर चीन लौटे,लेकिन क्या आज के चीनी लोगों को यह सब याद है,उनके मन में भारत की छवि कैसी है ?
चाइनिज़ एकेडमी ऑफ़ सोशल साइंसेज के प्रो. ल्यु जियान भारत पर शोध करते हैंl वह कहते हैं,-“ऐतिहासिक तथ्यों से हमें पता चलता है कि भारतीय संस्कृति ने चीन पर ज़्यादा असर डालाl चीनी संस्कृति ने भारत को उतना प्रभावित नहीं किया,वास्तव में चीन में हम लोग संस्कृति के क्षेत्र में भारत के ऋणी हैं”,लेकिन आज के समय में चीन भारत को हर समय आँख दिखाने की सोचता हैl
भारत जैसे विश्व कल्याण की भावना रखने वाले सहिष्णुता से लबरेज पड़ोसी को पाकर चीन को तो धन्य होना चाहिए,लेकिन कायर और बदले की भावना रखने वाले इस गेर-जिम्मेदार पड़ोसी को आज हमारी सरकार और माँ भारती के सच्चे सपूत मुँह तोड़ जवाब दे रहे हैंl
वर्ष १९५४ में चीन,भारत व म्यांमार द्वारा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के ५ सिद्धान्त यानी पंचशील प्रवर्तित किए गए,परन्तु चीन नें मैत्री सम्बन्धों को ताक पर रख कर १९६२ में भारत पर आक्रमण कर दिया और बहुत सारी जमीन पर कब्जा करते हुए एकपक्षीय
युद्ध विराम की घोषणा कर दी। उस समय से दोनों देशों के सम्बन्ध आज-तक सामान्य नहीं हो पाए हैंl
हज़ारों वर्षों तक तिब्बत ने एक ऐसे क्षेत्र के रूप में काम किया,जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से अलग और शांत रखा, परंतु जब वर्ष १९५० में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर वहाँ कब्ज़ा कर लिया,तब भारत और चीन आपस में सीमा साझा करने लगे और पड़ोसी देश बन गए। वर्ष १९५९ में तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक और लौकिक प्रमुख दलाई लामा तथा उनके साथ अन्य कई तिब्बती शरणार्थी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गए। इसके पश्चात् चीन ने भारत पर तिब्बत और पूरे हिमालयी क्षेत्र में विस्तारवाद और साम्राज्यवाद के प्रसार का आरोप लगा दिया।
वर्ष १९६२ में सीमा संघर्ष से द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर झटका लगा,उसके बाद भारत-चीन राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल किया गया। इसके बाद समय के साथ द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला।
वर्ष १९८८ में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया शुरू करते हुए चीन का दौरा किया। दोनों पक्ष सीमा विवाद के प्रश्न पर पारस्परिक स्वीकार्य समाधान निकालने तथा अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के लिये सहमत हुए,पर सीमा विवाद हैं,जैसे-पैंगोंग त्सो मोरीरी झील विवाद,डोकलाम गतिरोध,अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद सहित परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत का प्रवेश,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख है। इसके साथ ही बेल्ट एंड रोड पहल संबंधी विवाद,चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे विवाद तथा सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन ही नहीं,चीन ने हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में भारत (क्युडा का सदस्य) की भूमिका पर भी असंतोष जाहिर किया है।

हाल ही में दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प हुई,जिसमें माँ भारती के २० जवान मातृभूमि की बलिवेदी पर चढ़ गए,वहीं ५६ चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गयाl आज भारत सरकार चीनी अर्थव्यवस्था का भारी मात्रा में प्रयोग किए जाने सामान का बहिष्कार करने को प्रतिबद्ध है,उनको प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी बहिष्कृत कर दिया हैl भारत ने कभी भी अपनी संप्रभुता और अखण्डता पर आँच नहीं आने दी हैl पड़ोसी अगर सच्चाई के साथ हमारे साथ है तो भारत भी उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलता हैl पूरा विश्वास है कि,भारत के सब लोग अब चीन से नाम मात्र का भी नाता नहीं रखेंगेl आगामी समय में अगर आवश्यकता पड़ी तो सारा देश वतन की हिफाजत के लिए हर समय तैयार हैl

परिचय-जीवनदान चारण का बसेरा  पोकरण(राजस्थान) में है। ‘अबोध’  आपका साहित्यिक उपनाम है। इनकी जन्म तारीख १३ जुलाई १९९४ एवं जन्म स्थान गांव पोस्ट आरंग है। श्री चारण का स्थाई पता आरंग(जिला बाड़मेर)है। परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध राज्य राजस्थान के अबोध ने बी.एड. सहित बी.ए. और एम.ए. की पढ़ाई की है। आपका कार्यक्षेत्र अध्यापक (विद्यालय-पोकरण) का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत आप समाज सुधार,प्रचलित कुप्रथाओं को दूर करने के लिए अपने विचारों से सतत सक्रिय रहते हैं। लेखन विधा-दोहे,श्लोक,ग़ज़ल, कविता(विशेष-संस्कृत में गीत,श्लोक, सुभाषित, लेख भी।) है। प्रकाशन में  ‘कलम और कटार’ (किताब)आपके नाम है तो रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिका में भी हो चुका है। आपकी विशेष उपलब्धि-संस्कृत साहित्य में लेखन करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-ईश्वर उपासना,देवी गुणगान और देशभक्ति है।  आपके लिए प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद जी हैं।

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