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रुदन

डॉ. वसुधा कामत
बैलहोंगल(कर्नाटक)
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आज १५ अगस्त का दिन,आज भारत को आजादी मिली थी,पर आज का १५ अगस्त कुछ अलग-सा था,क्योंकि केन्द्र सरकार ने धारा ३७० को हटा दिया था और सही मायने में पूरी आजादी मिली। उत्तर भारत तो दुल्हन की तरह सज गया था,पर भारत के दक्षिण भाग में प्रकृति ने अपना रंग बदल दिया और प्रकृति के प्रकोप के कारण दक्षिण का आधा हिस्सा जल प्रलय की चपेट में आ गयाl हर जगह सिर्फ़ रुदन ही रुदन सुनाई दे रहा था।
आज ही के दिन हमारी संस्था ने संत्रस्तों को मदद करने का कार्यक्रम आयोजित किया था। यह बात मुझे आज ही के दिन सुबह पता चलीl मैं थोड़ी मायूस हो गयी,क्योंकि बोला नहीं गया था,पर मैंने भी ठान लिया कि मैं भी एनसीसी के बच्चों को लेकर ही जाऊँगी। पहले बच्चों को पूछ लिया,जितने तैयार हो गए उन्हें लेकर वाइस प्रिंसिपल के पास गई और बोला-मैं और मेरे सोलह बच्चे जाएंगेl थोड़ी मुश्किल थी,पर उन्हें मानना ही पड़ाl फिर हमारे लिए एक छोटी बस दे दी गयी और यहाँ से हमारा सफर शुरु हुआ।
हम सब बस में बैठ गए,हमारे साथ ७-८ शिक्षिकाएँ भी थी। हम सब आनंद में थे,क्योंकि आज हम दुखियारों के आँसू पोंछने जा रहे हैं, उनके दु:ख में शामिल होने जा रहे हैं। बस हम चर्चा करते निकल रहे थे। बाहर का सुंदर प्रकृति का नजारा और शांत मन,मानो जैसे स्वर्ग में ही भ्रमण कर रहे हो। यह सब थोड़ी देर के लिए ही था। जब हमारी बस ने रामदुर्ग नामक गाँव में प्रवेश किया तो,बस क्या था ७-८ किमी के बाद हम सबके चेहरों पर मायूसी छा गईl हम बस में बैठे-बैठे जिस प्रकृति का आनंद ले रहे थे,उसी प्रकृति ने इस जगह पर तांडव ही कर लिया था।
बड़े-बड़े वृक्ष,जिसके हाथ आसमान को छू रहे थे,आज मानो वसुंधरा को अपनी हालत का जिम्मेदार ठहरा रहे थे। वे वसुंधरा पर ऐसे गिरे थे कि,मानो बोल रहे हों,-“हे माँ, हमें माफ कर दो,हम तेरे चरणों में नतमस्तक हो रहे हैं। हमें तू बचा ले।” इतना सब देखकर हम डरे हुए थे। फिर हमें जिस स्थान पर मदद के लिए जाना था,उससे २ किमी पहले हम सबको प्रशिक्षण दिया गया।
सबसे पहली बात उन्होंने हमें यह बतलाई कि आपको डरना नहीं है। वहाँ के हालातों को सविस्तार हमें बताया गया और हमारे हाथों में दैनंदिन लगने वाली चीजों की किट दी गई और हम बंदोबस्त में वहाँ से निकल पड़े। हमारे सोच के परे वहाँ का वातावरण था। हमारी बस उस स्थान पर आखिरकार थम ही गई। वहाँ की हालत बस में बैठे-बैठे देख दिल रो उठा,क्योंकि जब हम बस से अपनी किट लेकर उतर रहे थे,तब छोटे-छोटे बच्चे-बूढ़े हमारी तरफ ऐसे देख रहे थे,मानो वे किसी अपने का इंतजार कर रहे थे,और आज वह इंतजार खत्म हुआ हो।
हम अपनी-अपनी किट लेकर भवन के अंदर चले गए। हम सबको दो-दो करके वहाँ के समाज सेवक ले जा रहे थे। मैं अपने एनसीसी बच्चों के साथ उनके हालात को सुनते-सुनते सबको दिलासा देते-देते आगे बढ़ रही थी। बस सबकी आँखों में आँसू ही थे,क्योंकि इन सबने सब-कुछ खोया था। उनके पास न घर था,न कपड़ा,न रोटी और इन सबसे बढ़ कर उनके अपने उनके पास नहीं थे।
मैंने वहीं के एक समाज सेवक को पूछ लिया,-“भाई साहब क्या इन लोगों को पहले आगाह नहीं किया गया था ?” उन्होंने बोला,-“मैम,इन्हें तीन दिन पहले से सूचित किया जा रहा था। बस इन्हें हाथ पकड़ कर बाहर निकालना बाकी था। जो इन्हें बोलने गया तो इनके उत्तर थे,आप क्या बता रहे हैं ? हम यहीं रहने वाले लोग हैं,हमें पता है पानी का प्रवाह हम तक नहीं पहुँचेगा। बड़े आए हैं हमको बेघर करने।” बस अब ये तो बेघर तो हो ही गए हैं,साथ में अपनों से भी दूर हो गए हैं। अब आँसू बहाने से क्या फायदा। इनकी इस परिस्थिति का कारण वे खुद हैं। बस और क्या,सबने थोड़ी आह भर ली। अपने नयनों में और दिल में उन पीड़ितों की तस्वीरों को लेकर निकल पड़े।
आज फिर मुझे सीओ कर्नल सर की बात याद आई,जो वे हमेशा कहते हैं-“प्रकृति को समझना जरूरी है।”

परिचय-डॉ. वसुधा कामत की जन्म तारीख २ अक्टूबर १९७५ एवं स्थान दांडेली है। वर्तमान में कर्नाटक के जिला बेलगाम स्थित बैलहोंगल में आपका बसेरा है। हिंदी,मराठी,कन्नड़ एवं अंग्रेज़ी सहित कोंकणी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली डॉ. कामत की पूर्ण शिक्षा-बी.कॉम, कम्प्यूटर (आईटीआई) सहित एम.फिल. एवं पी-एच.डी. है। इनका कार्य क्षेत्र सह शिक्षिका एवं एन.सी.सी. अधिकारी का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में जारी गतिविधियों में भाग लेना है। इनकी लेखन विधा-कविता,आलेख,लघु कहानी आदि है। प्रकाशन में ‘कुछ पल कान्हा के संग’ है तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मुक्त भाव की कई रचनाएँ आ चुकी हैं। डॉ. कामत को भगवान बुध्द फैलोशिप पुरस्कार सहित ज्ञानोदय साहित्य पुरस्कार,रचना प्रतिभा सम्मान,शतकवीर सम्मान तथा काव्य चेतना सम्मान आदि मिल चुके हैं। इनके अनुसार डॉ. सुनील परीट का मार्गदर्शक होना विशेष उपलब्धि है। लेखनी का उद्देश्य-पाठकों को प्रेरणा देना और आत्म संतुष्टि पाना है। हिंदी के कई मंचों पर हिंदी का ही लेखन करने में सक्रिय डॉ. वसुधा कामत के लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-कबीर दास जी एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-डॉ. परीट,संत कबीर दास,मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,तुलसीदास जी एवं अटल जी हैं। आपकी विशेषज्ञता-मुक्त भाव से लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हमें बहुत अभिमान है। हिंदी हमारी जान है। हमारे राष्ट्र को अखंडता में रखना अति आवश्यक है। हिंदी भाषा ही सभी प्रांतों को जोड़ सकती है,क्योंकि यह एकदम सरल भाषा है।

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