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होली में रंग

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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आओ खेलें होली में रंग,
होली के रंग गोरी के संग।

भीगा-भीगा मौसम आया
रंग-रंगीली बौछारें लाया,
भीगा गोरी का अंग-अंग
आओ खेलें होली में रंग…
होली के रंग गोरी के संग।

हँसते-हँसते बुरा हाल है
बहकी सी सभी की चाल है,
पिलाई है ये किसने भंग ?
आओ खेलें होली में रंग…
होली के रंग गोरी के संग।

नाच रही मस्तों की टोली
देवर-भाभी करे ठिठोली,
मिलकर करें सभी हुड़दंग
आओ खेलें होली में रंग…
होली के रंग गोरी के संग।

आए हम सब घूम-घूम कर
नाचे-गाएं झूम-झूम कर,
थिरके पाँव और बाजे चंग
आओ खेलें होली में रंग…
होली खेलें गोरी के संग।

हर तरफ़ छाया उल्लास है
राधा-कृष्ण करते रास है,
आई ख़ुशी,छाई उमंग
आओ खेलें होली में रंग…
होली खेलें गोरी के संग।

रंगों का त्यौहार आ गया
मौसम पर ख़ुमार छा गया,
जागी है नस-नस में तरंग
आओ खेलें होली में रंग…
होली खेलें गोरी के संग।

वृंदावन में धूम मची है
राधा रंगों से नहीं बची है,
बड़े निराले कान्ह के ढंग।
आओ खेले होली में रंग…
होली खेले गोरी के संग॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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