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रंग प्रीत के

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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रंग प्रीत के डाल के,मले गुलाली माथ।
खेल रहे होली यहाँ,राधा मोहन साथ॥

बरसाना में धूम हैं,नाच रहे सब ग्वाल।
गोप गोपियाँ मल रहे,रंगों से हैं गाल॥

पिचकारी हाथों लिए,दौड़ा दौड़ा जाय।
छोटा कान्हा राधिका,प्रीत रंग बरसाय॥

होली आई प्रीत के,दुश्मन होते मित्र।
रंगों की बौछार से,बने रँगीले चित्र॥

रंग प्रीत के हैं सजे,ले लो जो भी रंग।
पावन परम पुनीत ये,प्रेम पिपासे अंग॥

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