श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

आज देवनगरी में राधेश्याम देखो खेल रहे हैं होली,
सभी मित्रों सखा को संग में,लेकर मना रहे हैं होली।
राधा खेली रुक्मिणी खेली,खेली सब सखी सहेली,
मधुर गीत झूम के गाएँ,हँस-हँस कर मनाएं होली।
चुपके-चुपके जाए,पिचकारी भर के कान्हा जी लाए,
रंग के बहाने कान्हा,राधा रानी को अंग से लगाए।
गोपी,गोपियन संग होली खेलें बनी है मतवाली,
खुशी से राधेश्याम डोले,जैसे डोले आम की डाली।
खेल रहे हैं सब होली,अपने मन मस्तों की ले टोली,
गुलाल की उड़े फुहार,कितना सुन्दर होली त्यौहार।
नहीं दिखे राजा रंक फकीर,नहीं दिखे गरीब-अमीर,
होली में सबके हाथों में,देखो खूब चमक रहा अबीर।
एक-दूजे को सभी रंग लगाते प्रेम सहित सम्मान पाते,
सभी मित्रों घर मिलने जाते,बने हुए पकवान खाते।
घर-घर की है यही कहानी,होली की है रीत पुरानी,
होली के दिन देवर-भाभी,करते हैं खूब मनमानी।
जल्दी परदेश से तुम भी आ जाना,मेरे पिया होली में,
तेरे बिन होली नहीं खेलूंगी,जी नहीं लगेगा होली में।
देखो आज होली का आया है बड़ा त्योहार,
मिट गया है सभी के मन का क्लेश हजार॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।