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कोरोना:जीना-मरना,दोनों मुहाल

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘कोरोना’ का संकट भी क्या गजब का संकट है। इसने लोगों का जीना और मरना,दोनों मुहाल कर दिए हैं। दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले भारत में कोरोना बहुत वीभत्स नहीं हुआ है लेकिन इन दिनों जिस रफ्तार से वह बढ़ा चला जा रहा है,वह किसी भी सरकार के होश फाख्ता करने के लिए काफी है। पहले माना जा रहा था कि ज्यों ही मई-जून की गर्मी शुरु होगी,कोरोना भारत से भागता नज़र आएगा लेकिन ज्यों-ज्यों गर्मी बढ़ रही है, कोरोना भी उससे आगे दौड़ता चला जा रहा है। दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में मरीज़ों के लिए बिस्तरों की कमी पड़ रही है और जो लोग जिंदा नहीं रह पाए,उनकी लाशों के अंतिम संस्कार के लिए भी जगह की कमी पड़ रही है। कोरोना की हालत में वे जो लोग घरों या अस्पतालों में कैद किए जाते हैं,वे डरते हैं कि किसी को पता न चल जाए कि वे कोरोना के मरीज़ हैं। जो जी नहीं पाते उनके घरवाले भी उनके अंतिम क्रिया-कर्म के लिए श्मशान घाट या कब्रिस्तान जाने में भी कतराते हैं। यह हालत देखकर मिर्जा ग़ालिब का यह शेर याद आता है-
हुए मर के हम जो रुस्वा,हुए क्यों न गर्के-दरिया।
ना कभी जनाज़ा उठता,ना कहीं मज़ार होता॥
ऐसी बुरी हालत में भी हमारे नेता लोग एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की बजाय एक-दूसरे की टांग खींचने में भिड़े हुए हैं। ऐसा लगता है कि उनके दिल में दया कम, सत्ता की भूख ज्यादा है। यही हाल हमारे अस्पतालों का है। इसमें शक नहीं कि ज्यादातर चिकित्सक और नर्सें अपनी जान पर खेलकर लोगों की सेवा कर रहे हैं,लेकिन कुछेक अपवादों को छोड़कर सारे अस्पताल इस संकट में भी पैसा बनाने में लगे हुए हैं। सिर्फ जांच के लिए एक गरीब आदमी को अपनी महीने भर की तनखा दे देनी पड़ती है और अगर उसे भर्ती होना पड़े तो इलाज खर्च की राशि सुनकर ही उसका दम निकल जाएगा। प्रत्येक कोरोना मरीज़ का इलाज मुफ्त होना चाहिए। दुनिया में सबसे ज्यादा और जल्दी ठीक होनेवाले मरीज भारत में ही हैं। गंभीर मरीज़ों की संख्या तो कम ही है। उन पर खर्च कितना होगा ? २० लाख करोड़ नहीं,मुश्किल से एकाध लाख करोड़ रु.! सरकार यह हिम्मत क्यों नहीं करती ? इतना तो कर ही सकती है कि इलाज़ के नाम पर चल रही लूटपाट वह तुरंत बंद करवा दे। जांच,दवा,कमरा और पूरे इलाज की राशि पर नियंत्रण लगा दे,राशि तय कर दे। गैरसरकारी अस्पतालों का दम नहीं घोंटना है लेकिन वे भी मरीज़ों का दम न घोंटें,यह देखना जरुरी है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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