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कोरोना:अनुत्तरित प्रश्न…

डॉ.सरला सिंह`स्निग्धा`
दिल्ली
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आज भारत ही नहीं,पूरा विश्व ही इस कोरोना की चपेट में आया हुआ है। कितने घरों से तो पूरा परिवार ही साफ हो गया। कितने लोग ऐसे भी हैं, जो मंहगी दवाइयाँ खरीदते-खरीदते बर्बाद हो गए। किसी के जेवर बिके तो किसी के मकान और
दुकान तक बिक गए। कोई अपने किसी को बचाकर सन्तुष्ट हो रहा है,तो कोई मकान-दुकान व जेवर बेचकर भी किसी अपने को नहीं बचा पा रहा है। आज की इस विषम और विषैली परिस्थिति का जिम्मेदार कौन है ? यहाँ इस परिस्थिति का दोषी भगवान और प्रकृति तो बिल्कुल नहीं है। फिर कौन …?
बहुत सारे लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि,यह विषाणु चीन की प्रयोगशाला में ही निर्मित एक जैविक हथियार है,जो वुहान की एक प्रयोगशाला से बाहर हुआ था। चीन ने अपने ही देश के सबसे गरीब प्रान्त वुहान का सफाया किया,वह भी जान-बूझकर। चीन के व्यवसायिक प्रान्तों में इस जैविक हथियार का असर क्यों नहीं हुआ ? यह स्वयं में ही एक बड़ा प्रश्न है…।
चीन को अपने देश के उत्पाद बेचकर बड़ी धन राशि एकत्र करनी थी,साथ ही दूसरे देशों को आर्थिक रूप से कमजोर भी बनाना था। उसे विश्व पटल पर प्रथम स्थान लेने की ललक थी। वह अपनी चाल में काफी हद तक सफल भी रहा है। बहुत से देश इस कोरोना के कारण अपने लाखों लोगों को खो चुके हैं,साथ ही आर्थिक रूप से भी पस्त पड़ गए हैं।
भारत भी ऐसे ही देशों में है,जिसे जन और धन दोनों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर से पहले हमारी सरकार मुख्य रूप से कोरोना से लड़ने के उपाय खोजने के बजाय शराब की दुकानों को खोलने में अधिक रूचि ले रही थी, क्योंकि उसे वहाँ से मोटी आय होने वाली थी। भीड़ तो वहाँ भी खूब होती रही,मगर उन पर नियंत्रण करने वाली पुलिस भी उन्हें ढील ही दे रही थी। इसी तरह अन्य जगहों पर भी खुली ढील दी गई और जब बीमारी नियंत्रण से बाहर होने लगी,तब कहीं जाकर उनकी आँखे खुलीं।
आज कहीं ऑक्सीजन की कमी के कारण लोग मर रहे हैं,तो कहीं दवाइयों की कमी के कारण, वह भी देश की राजधानी दिल्ली में बड़े-बड़े अस्पतालों में। बाकी छोटे शहरों और छोटे अस्पतालों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। कहीं दवा नहीं,कहीं पलंग नहीं और किसी तरह जिनको पलंग भी मिल गया तो प्राणवायु (ऑक्सीजन) ही खत्म।
इधर,अस्पताल तक पहुँचाने के लिए एम्बुलेंस वाले अलग से लूट रहे हैं। वह भी केवल उन बीमार लोगों को ही ले जाते हैं, जिनका अस्पताल में पलंग पक्का होता है। इसके अलावा भी अमरता लिखवा कर लाए लोग कई चिकित्सा की चीजों में चोरबाजारी पर उतर आए हैं। कोई रेमडेसिविर दवा छिपाकर काले में बेच रहा है तो कोई ऑक्सीजन सिलेंडर ही छिपाकर कालाबाजारी कर रहा है। दानवी प्रवृत्ति के लोग श्मशान तक को भी नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे लोगों को जरा भी शर्म क्यों नहीं आती है…?
जिनके पास दवा और ऑक्सीजन खरीदने के लिए लाखों रुपए हैं,वे तो अपने लोगों को कुछ हद तक बचा ले जाएंगे,लेकिन जिनके पास कुछ भी नहीं है ऐसे लोग कहाँ जाएं…? आज इस महामारी के समय में एक पलंग के लिए लोग मंत्री-संत्री तक जोर लगा रहे हैं,पर जिनको जानने वाला कोई भी नहीं,उनके ऊपर क्या गुजर रही होगी…? यह एक बहुत बड़ा और ज्वलंत प्रश्न है। इसी प्रकार के बहुत से सवाल हैं,जिनके कोई उत्तर नहीं मिल पाते हैं।

परिचय-आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में कार्यरत हैं। डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में ४अप्रैल को हुआ है पर कर्मस्थान दिल्ली स्थित मयूर विहार है। इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि), बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) और पीएचडी भी की है। २२ वर्ष से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ. सिंह लेखन कार्य में लगभग १ वर्ष से ही हैं,पर २ पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। कविता (छन्द मुक्त ),कहानी,संस्मरण लेख आदि विधा में सक्रिय होने से देशभर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),२ सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि प्रकाशित है।महिला गौरव सम्मान,समाज गौरव सम्मान,काव्य सागर सम्मान,नए पल्लव रत्न सम्मान,साहित्य तुलसी सम्मान सहित अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा भी आप ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज की विसंगतियों को दूर करना है।

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