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संकट:भारत का सिकुड़ता मध्यम वर्ग

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘कोरोना’ की महामारी के दूसरे हमले का असर इतना तेज है कि लाखों मजदूर अपने गाँवों की तरफ दुबारा भागने को मजबूर हो रहे हैं। खाने-पीने के सामान और दवा-विक्रेताओं के अलावा सभी व्यापारी भी परेशान हैं। उनके काम-धंधे चौपट हो रहे हैं। इस दौर में नेता और चिकित्सक लोग ही ज़रा ज्यादा व्यस्त दिखाई पड़ते हैं। बाकी सभी क्षेत्रों में सुस्ती का माहौल बना हुआ है। पिछले साल करीब १० करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे। उस समय सरकार ने गरीबों का खाना-पीना चलता रहे,उस लायक मदद जरुर की थी लेकिन यूरोपीय सरकारों की तरह उसने आम आदमी की आमदनी का ८० प्रतिशत भार खुद पर नहीं उठाया था। अब विश्व बैंक के आँकड़ों के आधार पर ‘प्यू रिसर्च सेन्टर’ का कहना है कि महामारी के कारण भारत की अर्थ-व्यवस्था में इतनी गिरावट हो गई है कि भारत के गरीबों की बात जाने दें,जिसे हम मध्यम वर्ग कहते हैं,उसकी संख्या लगभग १० करोड़ से घटकर करीब ७ करोड़ रह गई है। ३.३० करोड़ लोग मध्यम वर्ग से फिसलकर निम्न में चले गए हैं। मध्यम वर्ग के परिवारों का दैनिक खर्च ७५० रुपए से ३७५०
रु. तक का होता है। यह आँकड़ा ही अपने-आपमें काफी दुखी करने वाला है। यदि भारत का मध्यम वर्ग १० करोड़ का है तो गरीब वर्ग कितने करोड़ का है ? यदि यह मान लें कि उच्च मध्यम वर्ग और उच्च आय वर्ग में ५ करोड़ लोग हैं या १० करोड़ भी हैं तो नतीजा क्या निकलता है ? क्या यह नहीं कि भारत के १०० करोड़ से भी ज्यादा लोग गरीब वर्ग में आ गए हैं ? भारत में आयकर भरनेवाले कितने लोग हैं ? ५-६ करोड़ भी नहीं,याने सवा सौ करोड़ लोगों के पास भोजन,वस्त्र,निवास,शिक्षा,चिकित्सा और मनोरंजन के न्यूनतम साधन भी नहीं हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि आजादी के बाद भारत ने कोई उन्नति नहीं की। उन्नति तो उसने की है,लेकिन उसकी गति बहुत धीमी रही है और उसका फायदा बहुत कम लोगों तक सीमित रहा है। चीन भारत से काफी पीछे था,लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था आज भारत से ५ गुना बड़ी है। कोरोना फैलाने के लिए वह सारी दुनिया में बदनाम हुआ है,लेकिन उसकी आर्थिक प्रगति इस दौरान भी भारत से कहीं ज्यादा है। अन्य महाशक्तियों के मुकाबले कोरोना को काबू करने में वह ज्यादा सफल हुआ है। भारत का दुर्भाग्य है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलवाने के बावजूद दिमागी तौर पर वह आज भी अंग्रेजों का गुलाम बना हुआ है। उसकी भाषा, शिक्षा,चिकित्सा,कानून,जीवन-पद्धति और उसकी शासन-प्रणाली में भी उसका नकलचीपना आज तक जीवित है। मौलिकता के अभाव में भारत न तो कोरोना की महामारी से जमकर लड़ पा रहा है,और न ही वह सम्पन्न महाशक्ति बन पा रहा है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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