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देव समर्पण

सोनिया शर्मा ‘सूर्यप्रभा’
दिल्ली
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काव्य संग्रह हम और तुम से


प्रेम का महोत्सव
जब वह रच रही होती है,
उसमें तन कहीं नहीं होता
बस होता है ऊर्जावान मन,
और एक प्रखर ज्योति
जो प्रज्वलित होती है
तो अंतस के अंधकार का पलायन हो जाता है।
सेज शैया धूमिल हो जाती है,
और उजास अंर्तमन समर्पित हो जाता है
अपने देवता के लिए…
स्वयं को समा लेता है
दिव्य प्रेम में…
जिसे कामना नहीं,उपासना कहते हैं॥

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