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क्या भारत के ५४५ प्रधानमंत्री ?

डॉ. देविदास प्रभु

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(विशेष-वे तमाम हिंदी क्षेत्र के लोग,जो अपने स्वार्थों के लिए संविधान की अष्टम अनुसूची के माध्यम से हिंदी को बोलियों में टुकड़े-टुकड़े करने पर आमादा हैं,वे तमाम लोग जो अज्ञानवश,क्षेत्रीयतावादी सोच मतबैंक की राजनीति या अन्य किसी कारण से भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रभाषा या राजभाषा के विरुद्ध किसी भी रूप में खड़े होते हैं,वे तमाम लोग जो भारतीय भाषाओं को आपस में लड़वा कर अथवा वैश्विकता की आड़ में हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के स्थान पर अंग्रेजी को आगे बढ़ा कर भारतीय भाषाओं को पीछे धकेलने के कुत्सित प्रयास करते हैं,उन सबको हिंदीतरभाषी भाषा-चिंतक व भारत चिंतक डॉ. देविदास प्रभु का यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।-डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’)

आठवीं अनुसूची की भाषाओं को लेकर जो तर्क सामने रखा जा रहा है,उसी तर्क को सामने रखते हुए देश के लिए ५४५ प्रधानमंत्री होने का प्रश्न उठाया है। आठवीं अनुसूची में हिंदी भी है,इसलिए आठवीं अनुसूची की सभी भाषाएँ राजभाषाएँ हैं और हिंदी २२ राजभाषाओं में एक है,कह कर मैकॉले पुत्र देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं। देश के ५४५ लोकसभा सदस्यों में प्रधानमंत्री भी शामिल हैं,इसलिए इस तरह तो देश के लिए ५४५ प्रधानमंत्री भी होने चाहिए। संविधान का अनुच्छेद ३४३ हिंदी को भारत सरकार की राजभाषा कह रहा है और किस तरह से अंग्रेजी हटाकर उस स्थान पर हिंदी लाने का जिक्र कर रहा है,कहीं पर भी और किसी भाषा का जिक्र नहीं है। अनुच्छेद ३५१ आठवीं अनुसूची की भाषाओं से शब्दों को लेकर राजभाषा हिंदी का विकास करने को कह रहा है। अनुच्छेद ३५१ के अलावा आठवीं अनुसूची का जिक्र और कहीं पर भी नहीं है। राजभाषा के विकास के लिए बनी संसदीय समिति में आठवीं अनुसूची की भाषाओं का प्रतिनिधि भी इसलिए है कि,वह राजभाषा हिंदी में अपनी भाषा के शब्दों को मिलाने के बारे में अपने सुझाव दे सकें। राज भाषा (कार्यालयीन भाषा) का मतलब एक ही भाषा राजभाषा है,यह बात तो छोटे बच्चे भी समझते हैं,मगर बड़े लोग जान-बूझकर नहीं समाझ रहे हैं,यह एक सोची-समझी साजिश है। अंग्रेजी को बरकरार रखने के उद्देश्य से आठवीं अनुसूची को हिंदी के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा रहा हैl आठवीं अनुसूची की हिंदी वो है,जो संविधान बनने से पहले अस्तिव में रही,हिंदी है और राजभाषा हिंदी वो है जो धारा ३५१ के अनुसार विकसित करनेवाली हिंदी है। केन्द्र सरकार की राजभाषा ही राष्ट्रभाषा है,संविधान बनाने वालों ने संविधान सभा में कुल ३८ बार हिंदी को `राष्ट्रभाषा` कहा है। अगर संविधान बनाने वाले कहते कि हमने किसी भाषा को राष्ट्र भाषा नहीं बनाया है,तो संविधान कभी भी स्वीकृत नहीं होता। सभा के सदस्यों ने संविधान को पारित इसलिए किया था कि,उनको ये समझाया गया था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया गया है। राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी और हिन्दुस्तानी को लेकर चर्चा हुई थी और किसी भी भाषा के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई थी। हिंदी को २२ राजभाषाओं में एक कहकर जनता को गुमराह करना,अन्य भाषा के लोगों को हिंदी के विरुद्ध भड़काना संविधान का बहुत बड़ा अपमान है। यह अपमान बड़े-बड़े लोग कर रहे हैं,और पूरी अंग्रेजी मीडिया करती आई है। राज्यों को अपनी राजभाषा चुनने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद ३४६ और ३४७ ने और उसे संविधान ने `प्रादेशिक भाषा` कहा है,मगर राज्य द्वारा चुनने वाली भाषा भी आठवीं अनुसूची की भाषा होने का जिक्र नहीं है। मतलब,आठवीं अनुसूची की भाषाएँ प्रादेशिक भाषाएं भी नहीं है वे केवल राजभाषा हिंदी के विकास केलिए सहयोग देनेवाली भाषाएं हैं। राज्यों ने आठवीं अनुसूची में केवल १४ भाषाओं को ही अपनी राजाभाषा चुना है,और ८ भाषाओं को किसी भी राज्य ने अपनी राजभाषा नहीं बनाया है। वैसे,डॉ. आम्बेडकर ने सभी राज्यों को हिंदी को ही अपनी राजभाषा बनाने का सुझाव दिया था,और भाषा पर आधारित राज्य बनाने का विरोध किया था।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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