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मेरा एकांत

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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मुझे मिला सदा…
भरा-पूरा एकाकीपन,
भीड़ से अलग…
सबसे जुदा
अजनबीपन…।
रोना चाहूं भी तो…
मुझे काँधा मेरा तक,
नहीं मिलता…
वहाँ पहले से ही,
कोई खोजता है…
अपने लिए अपनापन…।
किसी की हथेली में,
चाँद दे दिया…
किसी ने आसमान से,
मेरा चाँद ही चुरा लिया…
फ़क़त एक सितारे की,
चाह में दौड़ती रही मैं…
अनमनी-सी आदतन।
नशे में है पूरी दुनिया…
मोहब्बत के,
मैं बटोर रही मोहब्बत में…
मिला खालीपन।
नूर बनकर दूसरों को दी…
मुस्कुराहटें,
लोगों ने छीन ली मेरी…
रातों की नींद और अमन।
गिला-शिकवा…
किसी से नहीं करेंगे,
चलते रहेगें बा-दस्तूर…
राह में सदा वफ़ा की,
न मिले हमसफर…
तो भी गिला नहीं।
साथ रहेगा सदा…
मेरा अकेलापन…॥

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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