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तीन रुपये का व्यय

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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एक राजा था। वह परा विद्या(अध्यात्म विद्या) का ज्ञाता था। एक दिन उसने अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया,और सभी प्रजावासियों को महल में एकत्रित होने के लिए आमंत्रित किया।सभी प्रजावासी और राजा के मंत्रीगण भी महल में आ गए। राजा ने सभी प्रजावासियों और मंत्रियों को तीन-तीन रुपये दिए और कहा-तुम सब इन रुपये से तीन वस्तुएँ खरीद कर लाना। पहली वस्तु वह है जो अब की हो तब की ना हो। दूसरी वस्तु वह है,जो अब की भी ना और तब की भी ना हो। तीसरी वस्तु वह है,जो अब की भी हो और तब की भी हो।
सभी प्रजावासी और मंत्रीगण पैसे लेकर बाजार चले गए। बाजार में जाकर कोई मिठाई वाले के पास गया और कहा-भाई तीन चीजें दीजिए जो अब की हो तब की ना हो,जो तब की हो अब की ना हो,जो अब की भी हो और तब की भी हो। मिठाई वाले नो कहा-बर्फी,पेड़ा,गुलाब जामुन ले लो,पर यह तीन चीजें तो हमारे पास नहीं है। कोई सब्जी वाले के पास गया,और यहीं तीन वस्तुएँ माँगी,सब्जी वाले ने भी कहा-आप सब्जी ले लीजिए,परन्तु यह तीन वस्तुएँ हमारे पास नहीं है। जो वस्त्रों की दुकान पर गए। उन्होंने भी दुकानदार से तीन वस्तुएँ की माॅगं की,लेकिन किसी दुकानदार के पास यह तीन वस्तुएँ नहीं थी।
प्रजाजन को बाजार में घूमते-घूमते शाम हो गई,लेकिन वे राजा के लिए तीन वस्तुएँ न ला सके। राजा के मंत्री के पास तीक्ष्ण सद्बुद्धि थी। वह बाजार गया,और उसने एक रुपये से जलेबी खरीदी। जलेबी के खाने का आनंद लिया,और आगे निकल गया एक रुपया उसने एक शराबी को दे दिया ।
उसने एक रुपये संतों की सेवा में लगा दिया। सायंकाल के समय सब राजा के पास एकत्रित हुए। राजा ने सबसे पूछा-मैंने आप सबको तीन रुपये दिए थे। क्या मेरे लिए तीन वस्तुएँ खरीद लाए।
प्रजावासियों ने कहा-महाराज यह तीन वस्तुएँ तो हमें कहीं भी प्राप्त नहीं हुईं।
मंत्री ने कहा-महाराज मैंने तीन रुपये को तीन वस्तुओं में खर्च कर दिया है। पहला रुपया तो मैंने जलेबी खाने में खर्च कर दिया। मैं जानता हूँ कि,मैंने जब तक जलेबी खाई तब तक उसका स्वाद और मिठास रहा है,जो अब का रहा तब का ना रहा।
दूसरा रुपया मैंने एक शराबी ही को दे दिया। मैं जानता हूँ कि वह शराबी शराबखाने पर जाएगा,और इस रुपये की शराब पीएगा जो मेरे अब का नहीं और तब का भी नहीं रहा।
तीसरा रुपया मैंने एक सन्त की सेवा में लगा दिया,जो इस रुपये को परोपकार या ज्ञानमार्ग में लगाएगा जो मेरे अब भी काम आएगा और मरणोपरांत सद्कर्म के खजाने के रूप में मेरे साथ जाएगा।
राजा मंत्री के इस कार्य से बहुत खुश हुआ,क्योंकि राजा परा विद्या (आध्यात्मिक विद्या) का ज्ञाता था। वह जान गया कि मंत्री आत्मज्ञानी है,और उसने तीन रुपये का व्यय सही दिशा में खर्च किया है ।
(नैतिक शिक्षा-धन का सदुपयोग ही श्रेष्ठतम सद्कर्म की कुंजी है।)

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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