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ओ राही,
आगे बढ़ते ही जाना-२
लोगों की बातों में,
भूल कर भी न आना।
आगे बढ़ते ही जाना-२…॥
तुम्हारे सभी रास्तों को,लोग गलत ही कहेंगे,
न खुद ही चलेंगे,न चलने ही देंगे।
तुम्हारे सभी रास्ते सही हैं हे राही,
तुम्हीं हो देशभक्त,शख्त साहसी सिपाही।
एक लक्ष्य लख ‘सावन’,
शान से कदम बढ़ाना।
आगे बढ़ते ही जाना-२…॥
लोग जो कहते हैं उसे सुनो,
पर मन के आदेशों को गुनों।
जो अंतर्मन को सुना वही हुआ सफल,
अपने हिस्से के सवालों को स्वयं करो हल।
मंजिल उसे ही मिली,
जिसे मंजिल था पाना।
आगे बढ़ते ही जाना-२…॥
परिचय : रजत एवं स्वर्ण पदक विजेता कवि,लेखक,गीतकार,सम्पादक एवं शिक्षक सुनील चौरसिया की जन्मतिथि ५ अगस्त १९९३ और जन्म स्थान-ग्राम अमवा बाजार(जिला-कुशी नगर,उप्र)है। वर्तमान में काशीवासी श्री चौरसिया का साहित्यिक उपनाम नाम `सावन` है। आपने कुशी नगर में हाईस्कूल तक की शिक्षा लेकर बी.ए.,एम.ए.(हिन्दी) सहित बीएड भी किया है। इसके अलावा डिप्लोमा इन कम्प्यूटर एप्लीकेशन, एनसीसी,स्काउट गाइड,एनएसएस आदि भी आपके नाम है। आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन,लेखन,गायन एवं मंचीय काव्यपाठ है। आप सामाजिक क्षेत्र में नर सेवा-नारायण सेवा की दृष्टि से यथा सामर्थ्य सक्रिय रहते हैं। आपकी लेखन विधा में कविता,कहानी,लघुकथा,गीत, संस्मरण,डायरी और निबन्ध आदि शामिल है। उपलब्धियों में राष्ट्रीय भोजपुरी सम्मेलन एवं विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बैनर तले मॉरीशस,इंग्लैंड, दुबई,ओमान और आस्ट्रेलिया आदि सोलह देशों के साहित्यकारों एवं सम्माननीय विदूषियों-विद्वानों के साथ काव्यपाठ एवं विचार-विमर्श शामिल है। एक मासिक पत्रिका के उप-सम्पादक भी हैं। आपके लेखन का उद्देश्य ज्ञान की गंगा बहाते हुए मुरझाए हुए जीवन को कुसुम-सा खिलाना,सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार कर सकारात्मक सोच को पल्लवित-पुष्पित करना, स्वान्त:सुखाय एवं लोक कल्याण करना है। कई समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। प्रकाशन में श्री चौरसिया की पहली पुस्तक ‘स्वर्ग’ २०१० में प्रकाशित हुई थी।