शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’
लखीमपुर खीरी(उप्र)
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जब परिवार हुआ करते थे।
हम धनवान हुआ करते थे।
कोई दर्द न, पास आता था-
हरदम मुस्काया करते थे॥
बाबा-दादी का नित हमको।
प्यार-दुलार मिला करता था।
माँ-पापा,चाचा,ताऊ ही-
सबके संकट-मोचन होते थे॥
दीदी-बुआ व चाची-ताई,
हम बच्चों की जां होती थी।
अब रिश्ते सब उंगली पर हैं-
तब रिश्ते दिल के होते थे।
संस्कार व मूल्य सभ्यता,
की नित कक्षाएं चलती थी,
कभी डांट तो कभी प्यार के
‘शिव’ उपहार मिला करते थे।
जब परिवार हुआ करते थे।
हम धनवान हुआ करते थे।
भाई-बहन सभी मिलकर के,
खूब मौज मस्ती करते थे।
बेश़क कम थी,बुद्धि व दौलत,
फिर भी न हम सब निर्धन थे।
सभी बंधे थे,प्रेम डोर से,
अन्य ना कोई भी बंधन थे।
काका रोज,बिठाकर कंधे,
हमको टहलाया करते थे।
रोज़ नयी बातें बतला कर,
हमको ज्ञान दिया करते थे।
अटका-पटकी,छीना-झपटी
भाई-भाई में रोज़ होती थी।
खूब खींचते बहन की चोटी,
बहुत प्यार उसको करते थे।
सदा बसंत ऋतु का मौसम,
कुल-उपवन छाया रहता था।
प्रेम,स्नेह की मंद पवन में,
भौंरे भी गुञ्जन करते थे॥
परिचय- शिवेन्द्र मिश्र का साहित्यिक उपनाम ‘शिव’ है। १० अप्रैल १९८९ को सीतापुर(उप्र)में जन्मे शिवेन्द्र मिश्र का स्थाई व वर्तमान बसेरा मैगलगंज (खीरी,उप्र)में है। इन्हें हिन्दी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। जिला-लखीमपुर खीरी निवासी शिवेन्द्र मिश्र ने परास्नातक (हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य) तथा शिक्षा निष्णात् (एम.एड.)की पढ़ाई की है,इसलिए कार्यक्षेत्र-अध्यापक(निजी विद्यालय)का है। आपकी लेखन विधा-मुक्तक,दोहा व कुंडलिया है। इनकी रचनाएँ ५ सांझा संकलन(काव्य दर्पण,ज्ञान का प्रतीक व नई काव्यधारा आदि) में प्रकाशित हुई है। इसी तरह दैनिक समाचार पत्र व विभिन्न पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो विशिष्ट रचना सम्मान,श्रेष्ठ दोहाकार सम्मान विशेष रुप से मिले हैं। श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा की सेवा करना है। आप पसंदीदा हिन्दी लेखक कुंडलियाकार श्री ठकुरैला व कुमार विश्वास को मानते हैं,जबकि कई श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ कर सीखने का प्रयास करते हैं। विशेषज्ञता-दोहा और कुंडलिया केa अल्प ज्ञान की है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार(दोहा)-
‘हिन्दी मानस में बसी,हिन्दी से ही मान।
हिन्दी भाषा प्रेम की,हिन्दी से पहचान॥’