रोहित मिश्र
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
***********************************
ये हमेशा वाद-विवाद का प्रश्न रहा है कि सरकारी विद्यालयों की पढ़ाई निजी विद्यालयों से बेहतर क्यों नहीं होती है। सरकारी विद्यालयों में निजी विद्यालयों से कम सुविधाएं क्यों उपलब्ध रहती है ?
दरअसल,सरकारी विद्यालय वो होते हैं,जिन पर पूरा नियंत्रण सरकार का होता है। यानि बच्चों के
पाठ्यक्रम से लेकर अध्यापक की नियुक्ति भी सरकार के निर्देशों पर होती है। यानि विद्यालय को लेकर कोई बड़ा फैसला प्रधानाचार्य भी नहीं कर सकता है। वह भी ऊपरी आदेशों का इंतजार करता है। तब जाकर कोई फैसला लेता है। यानि सरकारी
विद्यालय में नीतिगत निर्णय का अभाव रहता है। सरकारी विधालयों में अध्यापक भी सरकारी होते है। यानि विद्यालयों के प्रदर्शन के आधार पर उनकी नौकरी का कार्यकाल नहीं निर्धारित होता है। अर्थात विद्यालय में बच्चों की संख्या और उनकी शिक्षा का स्तर से उनकी आय और छवि निधारित नहीं होती है,जिस कारण सरकारी अध्यापक बेफिक्र रहते हैं।
सरकारी विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं के लिए विद्यालयों का विभाग जनप्रतिनिधियों पर निर्भर रहता है। अर्थात जनप्रतिनिधियों की कृपा दृष्टि पर ही विद्यालयों की सुविधाएं और विकास निर्भर होता है।
निजी विद्यालय,सरकारी से कर्ई मामलों में अलग होते हैं। निजी का विकास,विशेषत: विद्यालय के शिक्षण शुल्क पर और कुछ अनुदानों पर निर्भर होता है। विद्यालय के अध्यापकों का वेतन उनकी योग्यता और क्षमता के आधार पर निर्धारित होता है। निजी विद्यालयों में बच्चों का विकास वहाँ के स्टॉफ यानि अध्यापक से कर्मचारियों तक पर निर्भर होता है,क्योंकि कर्मचारियों तक के व्यवहार तक का बच्चों के मानसिक विकास पर असर पड़ता है। निजी विद्यालयों की शिक्षा का लाभ उच्च पैसों वालों का परिवार ही उठाता है,क्योंकि इनके शुल्क का भार गरीब परिवार नहीं उठा सकता है।
विद्यालय में कोई भी नीतिगत निर्णय के लिए जनप्रतिनिधियों पर विद्यालय का विभाग निर्भर नहीं होता है,बल्कि प्रबंधन स्टाफ नीतिगत निर्णयों के लिए स्वतंत्र रहता है। वहाँ पर अध्यापक से लेकर चपरासी तक अपनी वर्तमान योग्यता पर नियुक्त होते हैं।
निष्कर्ष यही है कि,निजी विद्यालयों में उच्च शुल्क के कारण गरीब परिवारों के बच्चे दाखिला नहीं ले पाते हैं। निजी विद्यालयों के जैसे सुविधा प्रदान करने के लिए सरकारी के स्टाफ प्रबंधन को अतिरिक्त अधिकारों की जिम्मेदारियाँ प्रदान करनी पड़ेगी। हर विद्यालय के लिए एक अलग मद का कोटा निर्धारित करना पड़ेगा,जिसका इस्तेमाल
स्टॉफ के सभी सदस्यों की सहमति से किया जा सके।
कहा जाता है कि,व्यक्ति चाहता तो सरकारी नौकरी है,पर अपने बच्चों को पढ़ाएगा निजी में…।
सीबीएसई और आईएससी बोर्ड की तरह हर राज्य का भी बोर्ड राजननीतिक दलों से अछूता रहे,ताकि शिक्षा पर कोई भी राजनीतिक प्रभाव न पड़ सके। तभी,सभी सरकारी विद्यालयों को नीतिगत निर्णय लेने में विलंब नहीं होगा,ताकि सर्व शिक्षा की सुलभता सुनिश्चित हो सके।