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हे माधव

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचनाशिल्प:१६/१३)


भीड़ भरी इस दुनिया में अब,
जीना हुआ हराम है।
हे माधव अब पार लगाना,
तुमसे ही अब काम है॥

नहीं सहारा दिखता मुझको,
एक तुम्हीं पर आस है।
आओगे इक दिन मेरे घर,
पूरा ही विश्वास है॥
हे गोपाला चरणों में अब,
बारम्बार प्रणाम है।
भीड़ भरी इस दुनिया में…।

बिलख रहे हैं शिशु सुत तेरे,
दर-दर ठोकर मार से।
कलयुग भारी है इस युग में,
दूर करो संसार से॥
माया नगरी नाच नचाते,
नटखट तेरा धाम है।
भीड़ भरी इस दुनिया में…।

आज सुना दे मधुर मुरलिया,
राधे प्रियतम आप ये।
गीता का सन्देश सुना दे,
मिट जाए संताप ये॥
सुमिरन करते हैं नर नारी,
देखो सुबहो शाम है।
भीड़ भरी इस दुनिया में…॥

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