कुल पृष्ठ दर्शन : 262

रात-दिन दौड़ती जिन्दगी

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
*****************************************************************

मिले
कितने ही लोग,
जिन्दगी के दोराहों पर
पर पता नहीं,
किन गलियों में
खो गए,
सम्बन्ध थे पुराने
वे टूटते रहे,
और इसी बीच
जुड़ते रहे
कुछ नए।
जिन्दगी
रुकी नहीं,
चलती रही
विवश-सी
इच्छा के आगे,
बुनती रही
सपनों का जाल,
ले हाथों में
साँसों के धागे।
जिन्दगी
समय की पटरी पर,
रही बिना रुके
रात-दिन दौड़ती,
देखती रही
नए-नए दृश्य,
पुरानों को
दूर कहीं छोड़ती।
मेले में दुनिया के
फूलकर गुब्बारे-सी,
जिन्दगी
फूट है जाती,
खोती
जब जिन्दगी,
मौत के अंधेरों में
तब,
कहाँ मिल पाती॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

Leave a Reply