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दिल में छिपा दूँ

डॉ. जानकी झा
कटक(ओडिशा)
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रिश्ता यह अनमोल है,
प्यार पर अपने हमें गुरूर है
जान से भी ज्यादा हम चाहें उन्हें,
कुर्बां उन पर ये जहां है।

न आँसू उनके कभी आने पाए,
न जाने क्या सोच कर दिल घबराए
न छूटे साथ यह मेरा,
न हो दिल कभी मैला।

आँखें जब हमारी चार हुई,
देखते ही देखते कुछ बात हुई
जाने-अनजाने न जाने क्यों दिल यह धड़के,
तुम्हारे आने पर खिल गया कलियों जैसे।

सन्नाटों में तुम याद आते,
हसीन सपनों की हो जैसे बरसातें
काश नकारात्मकता दूर होती,
न मैं यूँ मजबूर होती।

हाथ थामा है तो साथ चलकर,
इस रिश्ते को हम निभाएंगे
सपनों को न बिखरने देना,
जीवन को यादगार हम बनाएँगे।

गर दिल से तुम आवाज़ दो,
खुदा की कसम अपना सब-कुछ लुटा दूँ।
तुम्हें छीन लूँ रबसे,
तुम्हें दिल में छिपा दूँ॥

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