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विश्व-हिंदीःनौकरानी है अब भी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आज ‘विश्व हिंदी दिवस’ है लेकिन क्या हिंदी को हम विश्व भाषा कह सकते हैं ? हाँ,यदि खुद को खुश करना चाहें या अपने मुँह मियां मिट्ठू बनना चाहें तो जरुर कह सकते हैं,क्योंकि यह दुनिया के लगभग पौने दो सौ विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है (इनमें भारत के भी हैं)। दुनिया के लगभग आधा दर्जन प्रवासी भारतीयों के देशों में किसी न किसी रुप में यह बोली और समझी जाती है और कई देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित होता रहा है। १९७५ में प्रथम बार यह नागपुर में आयोजित हुआ है। लगभग ५० साल इस विश्व हिंदी सम्मेलन को आयोजित होते हुए हो गए लेकिन हिंदी की दशा आज भी भारत में नौकरानी की है। अंग्रेजी आज भी भारत की महारानी है और हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं उसकी नौकरानियां हैं। देश में कांग्रेस और विरोधी दलों की इतनी सरकारें पिछले ७२ साल में बनी,लेकिन किसी प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं पड़ी कि इस अंग्रेजी महारानी को उसके सिंहासन से नीचे उतारे। भाजपा और नरेंद्र मोदी को २०१४ में हम इसीलिए लाए थे। उनके लिए हमने अपना सारा अस्तित्व और संबंध दांव पर लगा दिए थे लेकिन इन पिछले साढ़े पांच वर्षों में हुआ क्या ? सिर्फ संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का भाषण मोदी और सुषमा ने पढ़ दिया,बाकी हर जगह आपको हिंदी वैसी ही पायदान पर बैठी मिलेगी,जैसी वह लाॅर्ड मैकाले के जमाने में बैठी हुई थी।कानून,चिकित्सा,अभियांत्रिकी,अंतरराष्ट्रीय राजनीति आदि किसी विषय की उच्च शिक्षा हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा में नहीं होती न कोई शोध होता है। सरकार के फैसले, संसद के कानून,अदालतों के फैसले,मरीजों का इलाज-ये सब काम अंग्रेजी में होते हैं। देश का ठगी का यह सबसे बड़ा कारोबार है। मैं अंग्रेजी या किसी विदेशी भाषा को स्वेच्छ: पढ़ने-पढ़ाने का पूर्ण समर्थक हूँ,लेकिन जब तक स्वभाषा में काम नहीं होगा,यह भारत एक नकलची,फिसड्डी और पिछलग्गू देश बना रहेगा। हम हिंदी को विश्व भाषा तो जरुर कहते हैं,लेकिन हमें यह कहते हुए जरा भी शर्म नहीं आती कि भारत के प्रांतों के बराबर जो देश हैं उनकी भाषाएं तो संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्य है और हिंदी को वहां घुसने की भी इजाजत नहीं है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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