बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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बाबुल का घर द्वार,लगे हैं जग से प्यारा।
मिलता सबका नेह,बिते जीवन ये सारा॥
हँसी खुशी का खेल,खेलते हैं सब मिलकर।
घर आँगन में पुष्प,महकते सुन्दर खिलकर॥
बचपन बीता आज,इन्हीं के पाकर साया।
हाथ पकड़ कर खूब,हमें चलना सिखाया॥
बाबुल है भगवान,हमारा पावन नाता।
पूजे सब संसार,यही है भाग्य विधाता॥
मिलता है सुख शांति,इन्हीं के चरणों आकर।
स्वर्ग बराबर धाम,मिला है बाबुल पाकर॥
सपनों का संसार,दिलाया दु:ख में पलकर।
और बनाया भाग्य,स्वयं काँटों पर चलकर॥