राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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सुन लो भगवान-सुन लो सरकार,
कथा हमारी आज सुनो एक बार…
बहुत झेल चुका ‘कोरोना’ की मार,
व्यथा सुनो मेरी तुम आज एक बार।
हूँ मैं मनुज बड़ा ही ईमानदार,
कर्म से करता बहुत ही प्यार…
चलता था विद्यालय से संसार,
अब साल से बंद है मेरी पगार।
देखा तो था मैंने जाते हुए कोरोना,
सोचा था बंद होगा छुपकर रोना…
पर कहाँ कब मुझे सुख भाया है,
देखो कोरोना पुनः लौट आया है।
कोरोना को भी मानव बड़ा भाया है,
तभी तो इनका सारा गुण अपनाया है…
नेताओं-चुनावों से वह तो मुँह चुराया है,
विद्यालय और आमजन पर मंडराया है।
सुन लो भगवान-सुन लो सरकार,
बहुत झेल चुका मैं कोरोना की मार…
देखो अब हो गया मैं आर्थिक बीमार,
लगता उठ ना पाऊँगा,उठ जाऊँगा सरकार।
पत्नी बोलती-मुझे राशन की दरकार,
संतान को किताब-कॉपी और चॉकलेट चार।
दवा चाहिए उन्हें जो पड़ गए हैं बीमार,
समझ नहीं आता चलेगा कैसे संसार…।
समझ नहीं आता चलेगा कैसे संसार…॥
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।