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स्मृति

नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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हम भूल जाएंगे उस जगह को
जहाँ की धूल,हमारे पैरों के तहों में बसी है,
एक दिन हम गरम तपती हुई रेत पर चल कर
नदी के ठंडे पानी में पैर डुबोने की स्मृति को,
फिर से पाने जाएंगे-
और पाएंगे,कि नदी सूख चुकी है!
एक आदमी किसी दूसरे ढंग से बताएगा-
मर जाना चिड़ियों की स्वाभाविक परिणीति है,
और झर जाना पत्तों की।
एक रात एक आदमी हमारे पास आकर कहेगा-
पीछे मुड़ कर देखने का अर्थ है,पत्थर हो जाना!
भूल जाओ अतीत की कहानी।
वर्तमान को देकर सलामी,अब कहो-
चलते रहो,चलते रहो,चलते रहो॥

परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।

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