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खुशी में गा लूं

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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जी करता है अपने दिल की बात कह ही डालूं,
सीने में है एक जलजला,कहीं तो इसे निकालूं…
साथ देता रहा लोगों की कई गलत बातों में भी,
छोड़ के अब सभी वो बातें,मैं भी गंगा नहा लूं।

मेरे दोस्त,क्यों सहमे हैं,मेरे इस फैसले से,
रोते हुए इन दुश्मनों को क्यों कर मना लूं…
रूठ कर बैठ गये हैं,नाखुश मेरी बात से,
उनसे गुफ्तगू करूँ या खुद को सम्भालूं।

दुनिया देगी साथ मेरा,एहसानों के बदले,
अब भी ये खुशफहमी,दिल में क्यों पालूं…
समझ सके तो समझ ले मुस्कुराहट मेरी,
क्यूं जरूरी तेरी बात में अपनी हाँ मिला लूं।

शीशे पर नहीं यकीं,मेरा तो नहीं है अक्स,
खुद के सांचे में क्यों ना,खुद को ही ढालूं…
रूदाली-सा जार-जार रोता रहा हूँ,यहाँ मैं,
अब तनहाईयों में,आँसू क्यों ना बहा लूं।

‘देवेश’ जिंदगी गमगीन नहीं है इन रातों में,
बस हर दु:ख में,कोई गीत खुशी का गा लूं…
मन्दिर-मस्जिदों पर तो,पड़े हुए हैं ताले,
क्यों ना मेरे कदमों मे मेरा ही सर झुका लूंll

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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