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मैं तुम्हें फिर मिलूँगी

सुनीता सिंह
पश्चिम बंगाल
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काव्य संग्रह हम और तुम से


मैं तुम्हें फिर मिलूँगी,
जब तुम कहीं उदास बैठे होंगे
या फिर खुशियों में रमे होंगे,
तुम्हे हँसता देख इतराऊंगी
मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।

घास पे पड़ी बूंद की तरह,
जो तुम्हारे स्पर्श से
कहीं विलीन हो जाएगी,
मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।

जब तुम सुबह-सुबह अंगड़ाई लोगे,
ठंडी-ठंडी सिहरन बन मैं आऊंगी
खिड़की से झाँकती रोशनी में रहूँगी,
मैं तुम्हें फिर मिलूँगी।
सिर्फ तुम्हारी बनकर,
कोई न बन्धन होगा….॥

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