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अब ‘राशन एकीकरण’ की तैयारी,क्या हाजमा भी एक होगा ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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‘एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड’ के बहाने ‘राष्ट्रीय एकीकरण अभियान’ के तहत केन्द्र की मोदी सरकार की सूची में अगला क्रम अब राशन कार्ड का है। इसे सरकार ने ‘एक राष्ट्र,एक राशन कार्ड’ नाम दिया है। इसका मानक प्रारूप हाल में राज्यों को जारी करके कहा गया है कि,वे राशन कार्ड के इसी नए प्रारूप को अपनाएं। देशभर में यह योजना १ जून २०२० से लागू होनी है। समझदारी की बात यह है कि सरकार ने शुरू में इसे बतौर पायलेट प्रोजेक्ट ६ राज्यों में लागू करने का फैसला किया है न कि जीएसटी और ‘फास्टैग’ जैसे पूरे देश में एक झटके में लागू करने के।
दरअसल ‘एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड’ योजना का मकसद किसी भी उपभोक्ता को देश के किसी भी हिस्से में उचित मूल्य की दुकान से सस्ते राशन की सुविधा उपलब्ध कराना है। कार्डधारक यह राशन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत प्राप्त कर सकता है। यह कानून देश में २०१३ में लागू हो चुका है। नई व्यवस्था को ‘राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी’ भी कहा जाता है। सरकार का कहना है कि,राष्ट्रीय स्तर पर राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि विभिन्न राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश जो भी राशन कार्ड जारी करें,वे सभी एक मानक प्रारूप में हों। बताया जाता है कि मानक राशन कार्ड में राशन कार्ड धारक का जरूरी ब्योरा शामिल किया गया है। राज्य चाहें,तो इसमें अपनी जरूरत के मुताबिक कुछ और जोड़ सकते हैं। ये राशन कार्ड २ भाषााओं में होंगे,जिसमें एक भाषा स्थानीय होगी। यह राशन कार्ड १० अंकों वाला होगा,जिसमें २ अंक राज्य कोड,अगले अंक राशन कार्ड की संख्या,२ अगले अंक परिवार के सदस्य की पहचान के तौर पर होंगे। सरकार के मुताबिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का लाभ ८१.३५ करोड़ लोगों को देने का लक्ष्य है,जिसमे से ७५ करोड़ लोग इस योजना के अंतर्गत आ चुके हैं।
ध्यान रहे कि सरकार सार्वजनिक खाद्य प्रणाली का डिजीटलीकरण कर रही है। इसके तहत राशन कार्डों को आधार कार्ड से लिंक किया जा रहा है। खाद्य मंत्रालय की अधिकृत जानकारी के मुताबिक‍ पिछले साल तक देश में कुल २३ करोड़ राशन कार्डों में से १९ करोड़ आधार से लिंक हो चुके थे। राशन कार्ड को आधार से जोड़ने से देश में लगभग ३ करोड़ फर्जी राशन कार्डों का पता चला। बकौल तत्कालीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान सरकार को इससे १७०० करोड़ रू. की बचत हुई। बता दें कि देश में ३ तरह के राशन कार्ड बनते हैं। गरीबी रेखा से ऊपर,गरीबी रेखा से नीचे और अंत्योदय अन्न योजना के तहत।
बुनियादी तौर पर यह योजना उन गरीबों के लिए है,जो देश के किसी भी हिस्से में काम करते हैं। वर्तमान में ऐसे गरीब उपभोक्ताअों को उचित मूल्य दुकान से सस्ता राशन लेने की सुविधा सिर्फ उसके अपने राज्य में है,जब‍कि ‘एक राशन कार्ड’ योजना के तहत मिलने वाले कार्ड से वह देश में कहीं भी ‍किसी भी राशन की दुकान से सस्ता अनाज हासिल कर सकेगा। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गरीबों को ३ रू. किलो चावल,२ रू. किलो गेहूं और १ रू. किलो अन्य अनाज दिया जाता है। अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत राशन कार्ड धारी को प्रति माह ३५ किलो खाद्यान्न दिया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल ४.१ करोड़ मजदूर एक राज्य से दूसरे राज्य में रोजगार के लिए पलायन करते हैं। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक देशभर में ५ लाख ३४ हजार ९६० उचित मूल्य की दुकानों में से ४ लाख ३७ हजार १७१ को ऑनलाइन जोड़ दिया गया है। यह सुविधा इसलिए भी अहम है कि पिछले दिनों बिहार के बक्सर में ३ बच्चों की मौत इसलिए हो गई थी,क्योंकि उनके माता-पिता के पास आधार लिंक्ड राशन कार्ड नहीं था। इसको लेकर देश में काफी बवाल मचा था।
ये योजना बुनियादी रूप से अच्छी है। गरीबों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। अभी तक इस पर राजनीतिज्ञों की वक्र दृष्टि नहीं पड़ी है,क्योंकि जैसे ही ‘एक राष्ट्र’ की बात आएगी, लोगों के कान खड़े हो सकते हैं। इस योजना में अभी तक कोई साम्प्रदायिक कोण नहीं है, लेकिन इसके डिजीटलीकरण पर संदेह के साए उमड़ सकते हैं। कारण कि इस ‘एकीकरण’ योजना के बारे में सही और प्रामाणिक जानकारी लोगों को नहीं है। यह बहुत साफ है कि यदि राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं होगा तो इसका लाभ नहीं मिलेगा। बहुत से लोग अभी भी इतने डिजीटल फ्रेंडली नहीं हुए हैं। इससे भी बड़ा सवाल यह है कि मोदी सरकार हर स्तर पर और इतनी तेजी से ‘राष्ट्र के एकीकरण’ में क्यों भिड़ी है। जब कर आया तो इसे कर एकीकरण बताया गया। जब धारा ३७० हटी तो इसे देश का संवैधानिक एकीकरण कहा गया,अब राष्ट्र के राशन एकीकरण की तैयारी है। ‘एकीकरण’ की यह रफ्तार इतनी तेज लगती है कि मानो सरकार खुद के साथ-साथ अवाम को भी रूककर साँस लेने देना नहीं चाहती। एकीकरण के हर नए दांव के साथ यह जताने की परोक्ष कोशिश है कि अभी तक हम एक नहीं थे,अब जाकर एक हुए हैं या हो रहे हैं। यानी आत्मिक एकता की अंतर्धारा को किसी बागड़ की जंजीर की माफिक बाहरी तौर पर किसी न किसी न रूप में दिखना-दिखाना जरूरी है। यह सिलसिला कब तक चलेगा, कहां थमेगा जाकर पता नहीं। कुछ लोग इसे काल्पनिक भी कह सकते हैं,लेकिन यह आशंका निर्मूल नहीं है कि बात अंतत: एक धर्म,एक परिधान,एक अन्न,एक बोली,एक रोग,एक इलाज और एक विचार पर जाकर टिके। एकीकरण की कदमताल में लोगों से किलकारियां भी संदूकों में बंद करने के लिए कह दिया जाए। गहराई से देखें तो नागरिकता संशोधन अधिनियम तो मात्र निमित्त है,लोगों में असल आक्रोश एकीकरण के इसी(दूर)आग्रह की वजह से उबल रहा है। बेशक देश में एक नागरिकता,एक राष्ट्रीयता होनी चाहिए,लेकिन एकीकरण का यह राग इतना भी कर्कश नहीं होना चाहिए कि पूरी सरगम ही दम तोड़ दे। राशन कार्ड की दरकार पेट के लिए है,जीने के लिए है, इसलिए ठीक है। कल को सबका हाजमा भी एक होने की खब्त कानून की शक्ल लेने लगे तो देश का क्या होगा ?

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