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हूँ मैं शिक्षक ईमानदार

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार,
अब बंद है मेरी पगार
सह रहा हूँ मैं ‘कोरोना’ की मार,
लगता अब जैसे जीना है बेकार।
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार…

मेरा ज्ञान है नहीं व्यापार,
स्वाभिमान से मेरा सरोकार
पर जरूरतें मुझे भी है सरकार,
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार…।

झेल रहा था मंहगाई की मार,
साथ लगता हो गया हूँ अब बेगार
जैसे मुसीबतों से करा दिया है प्यार,
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार…।

हाथ फैलाने को नहीं मैं तैयार,
सहायक नहीं कोई बंधु या यार
मुसीबतों में है भाई मेरा परिवार,
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार…।

मैं ठहरा निजी शाला का ‘सर’,
हरता रहा सदैव अज्ञानता को पर
परिस्थिति हो चुकी है जी अब जर्जर,
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार…।

मजदूरों के संग खड़ी सरकार,
व्यापारियों का हुआ शुरू व्यापार
अब बचाओ सरकार मेरा भी आधार,
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार…।
हाँ,हूँ मैं शिक्षक ईमानदार॥

परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैl जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैl भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैl साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैl आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैl सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंl लेखन विधा-कविता एवं लेख हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैl पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंl विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

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