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ज़माना

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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ज़माना तो,
आज भी वही है
जो कल था,
बदलाव तो
मनुष्य की,
मानसिकता में
आया है।
भावनाएं,
सिमट गई हैं
मर गई हैं
सम्वेदनाएं,
निजी स्वार्थ
ले आया है,
रिश्तों में अलगाव।
छूट गया है,
संस्कारों का हाथ
ऊंची हो गई है,
मज़हब की दीवारें
अपनापन जैसे,
रूठ गया है।
हर कोई,
खींच रहा है सुख
अपनी ओर,
सर्दी की
रजाई की तरह।
न जाने कहाँ ?
खो गया है वो,
भोर का तारा
वो रात्रि का चाँद।
कल-पुर्जों के,
ज़माने में
आदमी भी,
बन कर
रह गया है,
केवल
एक मशीनll

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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