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‘मिर्जापुर २’ के सामने बाकी पटाखे फीके

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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काले कपड़े कैसे खादी की आड़ में सफेदपोश हो जाते हैं,शतरंज का पूरा खेल राजा अपने सिपाहियों पर लड़ता है लेकिन रानी की एक चाल पूरी बाजी पलट देती है,अपराध और राजनीति कैसे अठखेलियाँ करती है भारत में,इन्हीं मुद्दों को धीमे से दर्शाती है ‘मिर्जापुर २’ श्रंखला। यह एक संजीदा सवाल है,न कि मात्र मनोरंजन और फ़िल्म,क्योंकि ‘जातिवाद’ भारत से कभी खत्म न होगा,जो देश का चुनावी ईंधन था है और रहेगा…।
*वही कहानी आगे बढ़ाई-
एमेजन प्राइम पर कुल १० अंक हैं,जिसमें हर अंक ४० ५० मिनट का है। घर वालों से छिपकर कान में ध्वनि यंत्र डाल कर गालियों को सुनने का सुख इसमें मिलने वाला है।
कहानी पहले भाग से ही आगे बढ़ाई गई है,यानी झोपड़ी वाले चाचा के ठुमकों के बाद की तबाही से आगे है। पंडित परिवार के गुड्डू,बबलू,स्वीटी के पेट में पल रहे बच्चे की जान लेने से आगे बढ़ाई गई है। त्रिपाठी परिवार के मुन्ना भइया जीवित बच गए हैं और वह अपनी काबिलियत साबित कर मिर्ज़ापुर की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं,साथ ही गुड्डू पंडित की लाश भी देखना चाहते हैं।
इधर,गुड्डू भइया साँस तो ले रहे हैं,लेकिन ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। भाई बबलू और पत्नी की कुर्बानी के बाद गुड्डू डिम्पी और गोलू के कंधों के सहारे ज़िंदा है,लेकिन वह खून का बदला खून से लेने के लिए बैचेनी के साथ लगे हुए हैं।
इधर,कालीन भैया डॉन से खादी पोश के सहारे आगे बढ़ने में लगे हैं,क्योंकि मुन्ना को कानून से बचना भी मुद्दा है।
कहानी में एक नया मोड़ है हिंदी के प्राध्यापक रति शुक्ला के पुत्र शरद शुक्ला जोनपुर में बैठकर मिर्जापुर की कुर्सी अपने पिता को श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट करना चाहते हैं।
पंडित-त्रिपाठी-शुक्ला के खेल में साँसें किसकी बचेगी,किसकी थमेगी,कौन इतिहास के पन्नों में मर कर दर्ज होगा,या वफादारी और गद्दारी में से कोई एक जीतेगा ? इस बार बन्दूकों के अलावा खादी और नशा भी साथ में होगा।
‘बांटो और राज करो’ को श्रंखला में लेकर दुश्मन का दुश्मन दोस्त पर भी काम किया गया है। श्रंखला (सीरिज)की शुरूआत काले बिच्छू से होना और कालीन भईया के काले कपड़ों का मद्धम-मद्धम खादी में तब्दील होना भी अच्छा लगा है। राजनीतिक पासे बड़ी चतुराई से फेंके गए हैं,जो आपको बांधे रखेंगे।
पटकथा पर खास ध्यान दिया गया है,जो लाजवाब है। एक संवाद-‘जो मर जाते हैं उनका उतना दु:ख नहीं होता,जितना दु:ख जो पीछे बच जाते हैं,उन्हें देख कर होता है।’
श्रंखला में त्रिपाठी परिवार में आँख-मिचौनी भी देखने को मिलेगी,जहाँ डिस्कवरी चैनल के शौकीन बाबूजी और बहू बीना की आँख मिचौनी हो,गोलू पर गुड्डू का हक जताने वाले नजरिए या मकबूल और बाबर की वफ़ादारी की जंग,नारी शक्ति और उत्थान जैसे नारे यह श्रंखला आपको बखूबी समझा देगी,और नारी शक्ति से परिचय भी करा देगी।
शतरंज का पूरा खेल राजा अपने सिपाहियों पर लड़ता है,लेकिन रानी की एक चाल पूरी बाजी पलट देती है। ठीक वैसे ही मिर्ज़ापुर की नागिनें राजा को डंक मार कर तख्ता पलटने का हुनर छिपाए बैठी है।
*अदाकारी-
अली फैजल ने गुड्डू और देवेंदु शर्मा ने मुन्ना के किरदार को सजीव करके रख दिया है। पंकज त्रिपाठी (कालीन भैया) अभिनय के भीष्म बनने की राह पर हैं तो श्वेता त्रिपाठी गोलू के किरदार से न्याय करती दिखी। रसिका दुग्गल ने जिस अंदाज से नीची नज़रों और बन्द जुबान से बहू बीना के किरदार को नए आयाम दिए,वह बॉलीवुड में दस्तक बन जाएगी। अमित स्याल ने पोलिस वाले मौर्या के किरदार में जान डाल दी है। ईशा तलवार और प्रियांशु भी दिल जीत लेंगे। विजय वर्मा भी बिहारी किरदार को गढ़ने में सफल रहे हैं तो लिलिपुट फारूकी भी छोटे परन्तु असरकारक लगे हैं। इन सबके बीच एक चेहरा इंदौर से रोहित तिवारी (मुख्यमंत्री निजी सहायक) भी रहे,जो ‘सावधान इंडिया’ से होते हुए मिर्जापुर में दिखे हैं। यह उनकी रंगकर्म को समर्पण की गाथा है। कुल मिलाकर निर्देशक ने हर किरदार से बखूबी काम लिया है।
‘मिर्जापुर २’ दिवाली के उस अनार की तरह साबित होगी,जब तक अनार जलेगा तब तक बाकी पटाखे फीके रहेंगे। वैसे,सीजन ३ के लिए पहेली छोड़ दी गई है।
*अंत में-
भाग १ खरगोश की तरह दौड़ा था,और २ कछुए की तरह चला,परन्तु अंत देख कर यह ८ घंटे अखरते नहीं हैं।

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंL आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंL १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैL आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंL

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