कुल पृष्ठ दर्शन : 336

भारत में २ हिंदुस्तान…

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************
`कोरोना` के इन ५५ दिनों में २ हिंदुस्तान साफ-साफ दिख रहे हैं। एक हिंदुस्तान वह है,जो सचमुच कोरोना का दंश भुगत रहा है और दूसरा वह है,जो कोरोना को घर में छिपकर टी.वी. के पर्दों पर देख रहा है। क्या आपने कभी सुना कि,आपके किसी रिश्तेदार या किसी निकट मित्र का कोरोना से निधन हो गया है ? क्या आपने सुना कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री की तरह हमारा कोई नेता,मंत्री, सांसद या विधायक कोरोना का शिकार हुआ है ? हमारे सारे नेता अपने-अपने घरों में दुबके हुए हैं। देश में मेरे सैकड़ों मित्र और परिचित हैं,लेकिन सिर्फ एक सम्पन्न परिवार के सदस्यों ने बताया कि,उनके यहां ३ लोग कोरोना से पीड़ित हो गए हैं। उनका अंदाज था कि यह उनके घरेलू नौकर, चालक या चौकीदार से उन तक पहुंचा होगा। यानि कोरोना का असली शिकार कौन है ? वही दूसरावाला हिंदुस्तान! इस दूसरे हिंदुस्तान में कौन रहता है ? किसान,मजदूर,गरीब,ग्रामीण ,कमजोर और नंगे-भूखे लोग! वे चीन,ब्रिटेन या अमेरिका जाकर कोरोना कैसे ला सकते थे ? उनके पास तो दिल्ली या मुंबई से अपने गाँव जाने तक के लिए पैसे नहीं होते। यह कोरोना भारत में जो लोग जाने-अनजाने लाए हैं,वे उस पहले हिंदुस्तान के वासी हैं। वह है `इंडिया!` वे हैं देश के १० प्रतिशत खाए-पीए-धाए हुए लोग और जो हजारों की संख्या में बीमार पड़ रहे हैं,सैकड़ों मर रहे हैं,वे लोग कौन हैं ? वे दूसरे हिंदुस्तान के वासी हैं। वे ‘इंडिया’ के नहीं,‘भारत’ के वासी हैं। इन भारतवासियों में से ७०-८० करोड़ ऐसे हैं,जो रोज कुआं खोदते हैं और रोज़ पानी पीते हैं। उनके पास महीनेभर की दाल-रोटी का भी बंदोबस्त नहीं होता। इन्हीं लोगों को हम ट्रकों में ढोरों की तरह लदे हुए,भयंकर गर्मी में नंगे पाँव सैकड़ों मील सफर करते हुए,थक कर रेल की पटरी पर हमेशा के लिए सो जाने के लिए और सड़कों पर दम तोड़ते हुए रोज देख रहे हैं। सरकारें उनके लिए भरसक मदद की कोशिशें कर रही हैं,लेकिन उनसे भी ज्यादा भारत की महान जनता कर रही है। आज तक एक भी आदमी के भूख से मरने की खबर नहीं आई है। यदि सरकारें प्रवासी मजदूरों को घर-वापसी की सुविधा पहले दे देतीं,तो हमें आज पत्थरों को पिघलाने वाले ये दृश्य नहीं देखने पड़ते। आज भी ‘भारत’ के हर वासी के लिए सरकार अपने अनाज के भंडार खोल दे और कर्जे देने की बजाय दो-तीन माह के लिए दो सौ या ढाई सौ रुपए रोज का जीवन-भत्ता दे दे तो हमारे ‘इंडिया’ की सेवा के लिए यह `भारत` फिर उठ खड़ा होगा।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply