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भारत-चीन के बिगड़ते रिश्ते और हमारी आत्मनिर्भरता

डॉ.पूर्णिमा मंडलोई
इंदौर(मध्यप्रदेश)

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भारत और चीन के रिश्ते स्पर्धा विशेष……

गलवन घाटी की घटना के बाद चीन को भारत कभी माफ नहीं करेगा। आज पूरा विश्व इस बात को समझ रहा है कि चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। चीन भारत की जमीन पर कब्जा करना चाहता है। ऐसी हरकत वह कई बार कर चुका है। चीन इस विवाद के लिए सुलह की बात तो करता है,परंतु वास्तविकता यह है कि चीन ऐसा कभी नहीं करेगा। उसकी कथनी और करनी में हमेशा अंतर होता है।
चीन के इस तरह बर्ताव के कारण भारत उसे सबक सिखाना चाहता है। भारतवासी उससे संबंध तोड़ने की बात करते हैं। चीनी सामानों का बहिष्कार करने की बात कर रहे हैं,मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते बहुत बड़े पैमाने पर हैं। ऐसा नहीं है कि भारत ही चीन पर निर्भर है,बल्कि चीन भारत पर अधिक निर्भर है। कईं तरह के प्राकृतिक कच्चे पदार्थ उसे भारत से ही मिलते हैं,एवं चीन को बाजार तो भारत में ही मिलता है। जिससे वह समृद्ध हो रहा है। ऐसी स्थिति में चीन को भारत से संबंध बिगाड़ने नहीं चाहिए,परंतु फिर भी वह ऐसा कर रहा है। यही सोच का विषय है।
चीन ने सस्ते दामों में वस्तुएं उपलब्ध कराकर भारत ही नहीं,पूरे विश्व में अपनी पकड़ बना ली है। चीन को जवाब देने के लिए भारत की भावुक जनता लगातार आह्वान कर रही है कि चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करो। लगातार मोबाइल,फेसबुक, ट्विटर आदि पर संदेश भेजे जा रहे हैं। बेशक चीनी सामान का बहिष्कार करने से चीन की कमर टूटेगी ही,परन्तु ऐसा करने से चीन कोई और गलत हरकत करने पर आमादा हो सकता है। इसलिए,यह समझना होगा कि इसे कैसे किया जाए।
चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करना भारत के लिए इतना आसान नहीं है,जितना समझा जा रहा है। चीन ने भारत में घरेलू छोटे-से-छोटे सामान से लेकर तकनीकी क्षेत्र मे अपने पैर जमा लिए हैं,जिन्हें उखाड़ने में वक्त लगेगा। चीनी सामान में मात्र तकनीकी उपकरण टी.वी.,मोबाइल,पेन ड्राइव का ही बहिष्कार नहीं करना है,बल्कि बहुत-सा सामान अगरबत्ती,बिजली की झालर,दवाईयां,

खिलौने,भगवान की मूर्तियां आदि को दैनिक जीवन और त्यौहारों पर उपयोग में लाया जा रहा है,उस ओर भी ध्यान देना आवश्यक है। भारत का सम्पन्न और मध्यम वर्ग चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर भी दे,परंतु भारत की लगभग ४० करोड़ जनता निम्न मध्यम वर्ग की है,जिन्हें सस्ते दामों पर बाजारों में वस्तुएं मिल जाती है,जो चीनी ही होती है। फिर ऐसी जनता को यह भी नहीं पता कि कौन-सी वस्तुएं देसी है या विदेशी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारत और चीन के रिश्ते मजबूरी के रिश्ते हो गए हैं,उन्हें निभाना अब हमारी मजबूरी है। यह बात तो तय है कि इस मजबूर रिश्ते को अब हम नहीं ढोएंगे,परंतु थोड़ा समय लगेगा। इसके लिए भारत को मजबूत कदम उठा कर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना होगा।
हाल ही में तालाबन्दी की वजह से अभी भारत के उद्योग पटरी पर नहीं आ पाए हैं। उनके सामने कच्चे माल और उपकरणों के अभाव की समस्याएं है। कहीं माल गोदामों में भरा है,जिसका निर्यात करना आवश्यक है,तो कहीं मजदूरों की समस्या है। इन सबको देखते हुए जल्दबाजी करना ठीक नहीं होगा।
चीन की कमर तोड़ने के लिए चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की पहली सीढ़ी है मितव्ययिता। हमें कम वस्तु में जीना सीखना और दिखावे की आदत को बदलना होगाl जैसे दिवाली पर घरों को प्रकाश की कम लड़ियों से सजाना,बच्चों को कम खिलौनों से खेलना सिखाना,मोबाईल एप्स का कम उपयोग आदि ऐसी कई जगह हैं,जहां हम कमी कर सकते हैं।
इधर,भारत आत्मनिर्भर होने के लिए कच्चा माल तैयार करने के लिए जुट जाए, परम्परागत उद्योगों को पुनः जीवित करें। विदेशों में जो भारतीय अभियंता,चिकित्सक काम कर रहे हैं,उनके लिए सही समय है कि वे भारत आकर देश की मदद करें। अपने ज्ञान और कार्य-कुशलता को लोगों को सिखाएं। भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें। छोटे-छोटे उद्योग शुरू करें। उन पर निर्भरता बढ़ाएं। भविष्य में बड़ी-बड़ी कम्पनियों में बनी वस्तुओं के लिए अन्य देशों के बाजारों में जगह बनाएं,अब हमें यह सीखना ही होगा।

अब समय आ गया है भावनात्मक रुप से नहीं,बल्कि आर्थिक रूप से सोचने का। सशक्त भारत का निर्माण करने के लिए राष्ट्रहित में संकल्प लेने का। भारतवासियों को अब इस बात के लिए पूर्ण निष्ठा से तैयार होना होगा कि,हमें आत्मनिर्भर बनना ही है,तभी हम कह सकेंगे-चीनी वस्तु अलविदा।

परिचय–डॉ.पूर्णिमा मण्डलोई का जन्म १० जून १९६७ को हुआ है। आपने एम.एस.सी.(प्राणी शास्त्र),एम.ए.(हिन्दी) व एम.एड. के बाद पी-एच. डी. की उपाधि(शिक्षा) प्राप्त की है। डॉ. मण्डलोई मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित सुखलिया में निवासरत हैं। आपने १९९२ से शिक्षा विभाग में सतत अध्यापन कार्य करते हुए विद्यार्थियों को पाठय सहगामी गतिविधियों में मार्गदर्शन देकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाई है। विज्ञान विषय पर अनेक कार्यशाला-स्पर्धाओं में सहभागिता करके पुरस्कार प्राप्त किए हैं। २०१० में राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान (जबलपुर) एवं मध्यप्रदेश विज्ञान परिषद(भोपाल) द्वारा विज्ञान नवाचार पुरस्कार एवं २५ हजार की राशि से आपको सम्मानित किया गया हैl वर्तमान में आप सरकारी विद्यालय में व्याख्याता के रुप में सेवारत हैंl कई वर्ष से लेखन कार्य के चलते विद्यालय सहित अन्य तथा शोध संबधी पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविता प्रकाशन जारी है। लेखनी का उद्देश्य लेखन कार्य से समाज में जन-जन तक अपनी बात को पहुंचाकर परिवर्तन लाना है।

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