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भारत ने बुद्ध दिया,चीन ने बदले में युद्ध

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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भारत और चीन के रिश्ते स्पर्धा विशेष……

भारत और चीन के सह अस्तित्व की भावनाएं बनाए रखने के लिए दोनों के लिए एक सामान्य नारा था-‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई,जो भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई के बीच २९ अप्रैल १९५४ को हुए समझौते के अंतर्गत 'पंचशील' में दिए गए 'पाँच सूत्रों' के अनुरूप था। मानव कल्याण तथा विश्व शांति के आदर्शों की स्थापना के लिए विभिन्न राजनीतिक,सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था वाले देशों में पारस्परिक सहयोग के पाँच आधारभूत सिद्धांत,जिन्हेंपंच सूत्रअथवापंचशीलकहते हैं, अपनाए गये। इसके अंतर्गत ये पाँच सिद्धांत निहित हैं-एक- दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना,एक-दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही न करना,एक-दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना,समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करना तथा शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना। पंचशील शब्द बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है,जो बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पाँच निषेध होते हैं। ये पाँच शील हैं-हत्या न करना,चोरी न करना, व्यभिचार न करना,असत्य न बोलना,मद्यपान न करना। विदित ही है कि,चीन में बुद्ध-धर्म पालन करने वालों की संख्या ९० प्रतिशत है। भारत ने चीन कोबुद्धदिया,जबकि चीन ने आज भारत को उसके बदलेयुद्धदिया है। यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि प्राचीन काल में किसी कारणवश भारत के महाराजा कनिष्क ने चीन देश पर आक्रमण किया और विजय पाई। इस पर चीन सम्राट् ने उनके पास अपने लड़के को जमानत के तौर पर रखा। इस चीन राजकुमार द्वारा भी चीन में बौद्ध धर्म का बहुत प्रचार हुआ। आज चीन के साथ भारत की घात-प्रतिघात की कार्रवाई चल रही है,जो भारत आजवास्तविक नियंत्रण रेखा(एल.ए.सी.)बरकरार रखने के लिए चीन पर हावी हो रहा है,वही भारत १९६२ के भारत-चीन युद्ध के समय अपनी सीमा को मैकमहोन रेखा मानता था। मैकमहोन भी कोई जमीन पर खींची हुई रेखा नहीं थी,वरन् सर हैरिन मैकमहोन द्वारा निर्धारित क्षेत्रों के केन्द्रीय नक्शे पर भारत और चीन के क्षेत्रों की बनाई गई विभाजन रेखा थी। इस युद्ध के बाद भारत के करीब ४५ हजार वर्गकिलोमीटर क्षेत्र पर चीन ने अपना कब्जा जमा लिया है,अत: अबवास्तविक नियंत्रण रेखाके रूप में नई विभाजन रेखा मानी जा रही है। इस सीमा रेखा का नाम सर मैकमहोन के नाम पर इसलिए रखा गया था,क्योंकि इस समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका उनकी थी और वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से ८९० किमी और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक २६० किमी तक फैली है। जहां भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है,वहीं चीन १९१४ के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। १९६२-६३ के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। इस कारण ही वर्तमान समय तक इस सीमा रेखा पर विवाद यथावत् बना हुआ है,लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है। तब प्रश्न है कि,क्यों चीन भारत से भिड़ा रहना चाहता है। यह बात कोई नई नहीं है। २ निकट पड़ोसियों में अक्सर ऐसा होता रहता है। चीन,भारत के पूरब,उत्तर और पश्चिम तक भारतीय सीमा को छूता है,इसीलिए बराबर झड़प होती रहती है। आज ही नहीं,दो साल पहले भी सिक्किम सीमा परडोकलाममें संघर्ष हुआ,जहाँ पहले चीन तना तो बाद में भारतीय फौज के दबाव पर पीछे हट गया। अभी-अभीगलवानघाटी में जो संघर्ष हुआ़,जिसमें चीन ने २० भारतीय जवानों को मार दिया तो उसी लड़ाई में भारत ने ५४ चीनी सैनिकों को मार दिया । चीन ने पहले तो इसे छिपाना चाहा,पर चीनी अखबारों द्वारा भंडाफोड़ कर दिया गया। वर्तमान में भारत और चीन के बीच जो हो रहा है,वह भविष्य में कुछ परिणाम देकर रहेगा,क्योंकि पूरे विश्व की इस पर नज़र है। हाल ही में ताईवान में जो नई सरकार बनी, उस सरकार का कहना था कि हम एक अलग स्वतंत्र देश हैं। ताईवान ने अमरीका, भारत सहित अधिकतर देशों को एक सम्मेलन में आमंत्रित कर खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दुनिया के सामने रखा। अमेरिका सहित अधिकतर यूरोपियन यूनियन के देशों ने भी ताईवान को मान्यता दे दी। अमरीका ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने सदन में प्रस्ताव भी पारित कर दिया और फिर ये सिलसिला बढ़ता ही गयाl अब प्रश्न यह है कि यह सब ऐसा क्यों हो रहा है ? २०१९ में जब नरेन्द्र मोदी की सरकार भारत में दोबारा चुनकर आ गयी,तो सरकार ने तुरंत धारा ३७० को समाप्त कर दिया और पूरी दुनिया को खुलकर बता दिया कि जम्मू-काश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और हम पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) लेकर रहेंगे,और अमरीका,इजरायल,जापान सहित अधिक देशों ने भी इसे स्वीकार कर लियाl सबने बयान दिया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है,वह जो चाहे करे। यहां से दिक्कत शुरू हुई चीन की,क्योंकि पाकिस्तान नेपीओकेमें लद्दाख का एक हिस्सा चीन को सौंप रखा है और ऊपर सेसीपेककॉरिडोर इसी पीओके से होकर गुजरता हैl अब चीन को समझ आया कि भारत पिछले ६ साल से पूर्वोत्तर भारत-चीन सीमा पर इतनी तेजी से सड़क,पुल,हवाई पट्टी आदि धड़ाधड़ क्यूं बना रहा था ? और उसको समझ आ चुका था कि वह घेरा जा चुका है। इसलिएकोरोनाविषाणु को उसने सुनियोजित तरीके से अपने विरोधी देशों तक शातिर तरीके से पहुंचाया। आज रणनीतिक घेराबंदी और व्यापारिक मार्गों पर अधिकतर यूरोपीय देश,अमरीका एवं जापान,फ्रांस,आस्ट्रेलिया,कनाडा आदि याने दुनियाभर के लिए सबसे बड़ा व्यापारिक समुद्री मार्ग 'साउथ-चाईना-सी' ही है,जहां से ८० फीसदी व्यापार इसी मार्ग के जरिए होता है जिस पर इस मार्ग में चीन ने अकेले कब्जा कर रखा है,और अपना समुद्री क्षेत्र बताता है। चीन विस्तारवादी नीति पर बहुत आगे बढ़ चुका है,तथा इस खेल में अमरीका सहित अधिकतर देशों को ये पता चल चुका है कि अगर अब चीन को नहीं रोका गया तो जैसे चीन ने शातिर तरीके से हांगकांग,ताईवान, मंगोलिया,जिनजियांग,तिब्बत आदि को अपना उपनिवेश बना लिया और अब उसकी नजरसीपेकके जरिए पाकिस्तान, बलूचिस्तान,नेपाल,श्रीलंका,बांग्लादेश,भूटान,म्यामार पर है। नेपाल की वर्तमान के.पी. ओली की वामपंथी सरकार की ढुल-मुल नीति जगजाहिर ही है, लेकिन अब चीन ने उसके दो-तीन छोटे-छोटे भाग को अपने कब्जे में कर लिया है,जिससे अब नेपाल का मोह भंग होना तय है। २०१८ में भारत से हुआ डोकलाम विवाद तो जगजाहिर है ही,इसीलिए आज अमरीका खुलकर पूरी दुनिया के सामने बोल रहा है कि चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी पूरी दुनिया के लिए खतरा है और अमरीका दुनिया को दिखा रहा है कि कभी तिब्बत,हांगकांग,ताईवान, जिनजियांग आदि स्वतंत्र देश हुआ करते थे लेकिन आज ये चीन केवन चाईनापालिसी के अंतर्गत हैं। इसीलिए चीन की घेराबंदी हो चुकी है,और इस काम में अमरीका सहित दूसरे देशों को भी अपनी भलाई दिख रही हैl उनको समझ आ रहा है कि वर्तमान में कोई चाईना को रोक सकता है तो केवल भारत,और भारत की वर्तमान सरकार ने इसका पूरा फायदा उठाया। तभी तो भारत ने सबकी सहमति लेने के बाद ही तो एक झटके में धारा ३७० को हटा दिया,जबकि पूरी दुनिया को पता है कि दुनियाभर में जितने भी पुराने विवाद थे, उसमें काश्मीर सबसे प्रमुख विवाद था,और इस़के पीछे भारत-पाक में ४ बार युद्ध भी हो चुका है। पिछले हफ्ते अमरीका ने अपनी परमाणु अस्त्रों से सज्जित ३ एयर क्राफ्ट कैरियर को साऊथ चाईना सागर में उतार दिया हैl ये इसलिए,ताकि चाईना अपना एयर क्राफ्ट भारत के समुद्री क्षेत्र हिंद महासागर की तरफ ना भेज सके,जबकि भारत का एयर क्राफ्ट जो रुस का दिया हुआ है,वो पहले से ही चीन सीमा की तरफ मुँह करके खड़ा है।चाईना अब चाहकर भी अपनीनेवीको भारत के सामने नहीं ला सकता,तो दूसरी तरफ जापान ने भी अपनी बैलेस्टिक मिसाइल का मुँह चीन की तरफ मोड़ दिया है और खुलकर बता दिया है कि भारत के साथ चीन कुछ भी संघर्ष की बात करेगा तो यही होगा,वहीं कनाडा,आस्ट्रेलिया और यूरोपीय यूनियन के कुछ देशों ने चीन को स्पष्ट तौर से समझा दिया है कि चीन को ईमानदारी पूर्वक लद्दाख का हिस्सा-अक्साई चीन को भारत को सौंप देना चाहिए। इधर,इजराइल पाकिस्तान के चलते खुलकर भारत के पक्ष में खड़ा है,यह भी किसी से छिपा नहीं है। अभी जब खूनी संघर्ष गलवान घाटी में हुआ तो भारत के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने चीन को यही तो कहा है कि,चीन को अपनी नीतियों पर एक बार चिंतन,मनन और पुनरावलोकन करना चाहिए कि उसने अब तक क्या किया है ? एक अनुमान है कि अगले २ साल के अंदर-अंदर भारत अपने पूरे नक्शे को पा लेगा, मतलब पीओके हमारा होकर ही रहेगाl मतलब कि हमको ज्यादा नहीं लड़ना पड़ेगा, बमुश्किल एक या दो दिन यदि चीन से युद्ध नहीं हुआ तो! अधिक संभावना है कि भारत एकसाथ ही चीन और पाकिस्तान को हमले का जबाब दे। अब यहां चीन की हालत ऐसी है कि अगर लड़ेगा तो नुकसान और नहीं लड़ेगा तो भी नुकसान उठाएगा। राष्ट्रीय भावना के कवि मैथिलीशरण गुप्त भी अपनी भारत भारती के माध्यम से पहले ही कह चुके हैं- 'शंका न थी,जब समर का साज भारत से सजा- जावा,सुमात्रा,चीन,लंका,सब कहीं डंका बजा।' गलवान घाटी की पर्वत श्रंखलाओं पर सीमा-रेखाएँ एक भूल-भुलैया है। यहाँ न कोई सीमा-रेखा है न सीमा के करीब कोई पोस्ट। अभी पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की जो सीमा रेखा,यानि एल.ए.सी. है,वह १९६२ की खूनी जंग का नतीजा है। यह युद्ध दोनों देशों के बीच उबड़-खाबड़ और असहज इलाकों में लड़ा गया था। लड़ाई अक्टूबर-नवम्बर में दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और गलवान और हॉट-स्प्रिंग पैगोंग झील के आरपार, रजांग्ला और डेमचौक इलाकों में हुई थी। तब से राजनीतिक तौर पर औपचारिक सीमांकन न हो पाने की वजह से दोनों देशों की सेनाएँ यहाँ डटी हैं। दोनों के बीच सीमा -बँटवारे को लेकर २२ बार बातचीत हो चुकी है,पर नतीजा अब तक सिफर ही रहा है। भारत पूरे अकसाई चीन पर अपना दावा जारी रखे हुए है,तो चीन सीमा के पास वाले क्षेत्रों पर अपना दावा करता है,जिसे भारत चीनी धारणावाली रेखा कहता है। अमेरिका,ब्रिटेन,ऑस्ट्रेलिया,फ्रांस,इटली,इजराइल सभीकोरोनासे हैरान-परेशान हैं और कोरोना के प्रसार पर समयोचित उपाय न करने के लिए चीन को जिम्मेवार बता रहे हैं। ऐसे में भारत की सीमा पर होने वाली झड़पों की छोटी जीत भी चीन की सरकार नियंत्रित मीडिया बड़ी करके दिखाती और शी जिनपिंग को अपनी छवि बचाने का मौका मिलता,पर ऐसा हो न पाया। दरअसल,भारत ने कभी भी चीन के अतिक्रमण पर कोई विरोध नहीं किया। चीनी आये और हमारी जमीन पर कब्जा करते चले गए। ये सिर्फ पिछले ३ वर्षों में हुआ है कि, हमारी सेनाओं को विरोध करने की आज़ादी दी गयी हैl २०१७ का डोकलाम हो या २०२० का लिपुलेख,प्योंगत्से या गलवान चीन को पीछे हटना पड़ा है। चीन भी जाने कौन से मुगालते में था,वह ये भूल गया कि यह भारत १९६२ का भारत नहीं है,जो चुपचाप अपना अपमान सह लेगा। ये २०२० का भारत है जो घर में घुस के मारने में यकीन रखता है। भारत के बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन ने भी लेह में दौलतबाग तक की सड़क पूरी कर ली है औररिवर ऑफ डेथ` के नाम से जाने जाने वाली नदी पर पुल भी बना लिया है,जो उसकी सामरिक स्थिति को मजबूत करता है।
चीन का मूल बल उसकी आर्थिक क्षमता है और उस पर आघात ही उसे झुकने को मजबूर कर सकता है। चीन अभी तक भारत में करीब करीब एक पक्षीय व्यापार कर रहा है उसका निर्यात उंसके आयात से करीब ६० गुना ज्यादा है। अब इस लड़ाई ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने अपनी बीएसएनएल और एमटीएनएल कंपनियों को ४-जी संचार शुरू करने के क्रम में किसी भी चीनी उपकरणों का इस्तेमाल न करने की सलाह दी है जिसके चलते ४७१ करोड़ के आदेश रद्द किए गए हैं। यानी भारत अब चीन की आर्थिक शक्ति की कमर तोड़ने में जुट गया है।
चीन की घटती वैश्विक साख और कोरोना के चलते पश्चिमी देशों की नाराजगी ने भारत का काम आसान कर दिया है। चूंकि सीमा को लेकर अब तक भारत और चीन की अंतिम सहमति नहीं बन सकी है,इसीलिए दोनों पक्ष कई बार आमने सामने आ चुके हैं। गलवान अभी का चरम बिंदु है। इसका खतरनाक पड़ाव पड़ सकता है,क्योंकि दोनों राष्ट्रों के पास परमाणु हथियारों से सम्पन्न बड़ी सेनाएँ हैं।
अभी जो वैश्विक परिदृश्य है,उसमें चीन अलग-थलग पड़ा दिखता है। पाकिस्तान भले उसका साथ दे रहा हो,पर भारत किसी मोर्चे पर पाकिस्तान को आगे बढ़ने नहीं देगा।
भारत ने अपने लद्दाख क्षेत्र में सीमा पर सड़क बनाकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और इसकी जल-थल-नभ सेना के लिए कोई कार्य दुष्कर नहीं है। भारत के पास युद्धक अस्त्र-शस्त्र भी अपेक्षाकृत अच्छे हैं,और जीत का भरोसा भी,साथ ही सत्य का दृढ़ आधार भी।

चीन को भारत के साथ समझौता करना ही पड़ेगा और १९६२ के पहले की ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ की स्थिति पर आना ही होगा। भारत और चीन के रिश्ते प्राचीनकाल में भी भाईचारे के थे और आगे भी रहेंगे!

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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