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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और हमारी मातृभाषा हिन्दी

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….

सभी जानते हैं कि यूनेस्को ने विभिन्न मातृभाषाओं के प्रति जागरुकता लाने या यूँ कहिए कि अपनी अपनी भाषा-संस्कृति के प्रति लोगों में रुझान पैदा करने के उद्देश्य से पूरे विश्व में २१ फरवरी को ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ मनाए जाने की शुरुआत वर्ष २००० से की है। हर साल इस दिन के लिए एक विषयवस्तु भी निर्धारित की जाती है।
चूँकि हमारी मातृभाषा हिन्दी है,इसलिए प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की ये पंक्तियाँ-‘निज भाषा उन्नति,सब उन्नति को मूल,बिन निज भाषा ज्ञान के,मिटे न हिय को शूल’ समझाती हैं कि, अपनी भाषा के माध्यम से हम किसी भी समस्या का समाधान खोज सकते हैं। यही कारण है कि विश्व के कई विकसित देश ही नहीं,बल्कि विकासशील देश भी अपनी अपनी मातृभाषा की बदौलत ही विश्‍व बाज़ार में छाए हुए हैं। इस कड़ी में कुछ प्रमुख देश हैं-इजराइल,जापान,चीन वगैरह।
इसमें कहीं भी शक की गुंजाइश नहीं हैं कि हमारा देश भी काफी प्रगति कर ही नहीं रहा है, बल्कि हाल के वर्षों में कुछ क्षेत्रों में हमारा पूरा प्रभाव परिलक्षित भी हो रहा है। फिर भी यह निर्विवाद सत्य है कि इस प्रगति का लाभ देश की आम जनता तक पूरी तरह पहुंच नहीं पा रहा है जिसका मुख्य कारण यही है कि हम शासन को जनता तक उसकी भाषा में पहुंचाने में अभी तक क़ामयाब नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए इस काम में तेजी लाने की आवश्यकता है,अन्यथा हमारी बड़ी से बड़ी उपलब्धि और प्रगति का कोई महत्व नहीं माना जा सकता।
यह सही है कि,विश्व पटल पर अंग्रेज़ी का प्रभाव है, लेकिन इस वैश्‍विक दौड़ में आज हिन्दी किसी भी दृष्टि से पीछे भी नहीं है। इसका मुख्य कारण यही है कि अब हम हिन्दीभाषी इसका प्रयोग सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में बख़ूबी कर रहे हैं। इसलिए अब यह बोलचाल की भाषा से उठ कर एक विशिष्ट भाषा की और अग्रसर है। अतः, हमें ध्यान देकर एवं प्रयासरत रह कर शासकीय कार्यालयों में ज्यादा से ज्यादा कामकाज हिन्दी में करवाने के लिए प्रेरित करते रहना होगा,साथ ही साथ इसकी स्वीकार्यता बढ़े,इस और भी ध्यान देते रहना होगा। यहाँ स्वीकार्यता से तात्पर्य है देश में भी और विश्व मेंं भी,साथ ही साथ सभी क्षेत्रों में।
यह भी निर्विवाद सत्य है कि वर्तमान दृढ़ निश्चयी प्रधानमंत्री शुरु से आज तक विश्व पटल पर हिन्दी का जिस सशक्त तरीके से प्रयोग कर रहे हैं,उसी के फलस्वरूप विदेश में न केवल हिन्दी की पैठ बढ़ी, बल्कि आजकल विदेशी शासनाध्यक्ष हो या अन्य उच्च पदाधिकारी भारतीयों के बीच ‘नमस्कार’ से सम्बोधन शुरू करते हैंं,और उन सभी की कुछ हिन्दी वाक्यों के माध्यम से सन्देश देने की चेष्टा रहती है। इस तरह यह मानना गलत नहीं होगा कि वर्तमान प्रधानमंत्री हिन्दी को एक अलग तरह की वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैंं।
इस बार उक्त दिवस की विषयवस्तु भी ‘शिक्षा और समाज में शामिल करने के लिए बहुभाषावाद को बढ़ावा देना’ है। इसलिए आज जब भौगोलिक दूरियां कोई मायने नहीं रख पा रही हैं,तब विश्व व्यापार जगत के मापदण्ड में बाज़ार भाषा जो एक महत्वपूर्ण भूमिका-योगदान अदा कर सकती है,उस और ध्यान देना जरुरी हो गया है। अतः,हमें अपनी कमियों को समझ,लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए योजनाएं इस तरह तैयार करनी होगीं,ताकि इस भूमण्डलीकरण के वर्तमान परिवेश में अपने को सफलतापूर्वक स्थापित कर पाएं।

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