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`कोरोना’ हमसे डरेगा…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगी।

आज के दम पर कल को मिलेंगे,
उसको भी हसीन करेंगे।
कुछ पल की खामोशी है यह,
बाद फिर से बारातें होंगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगीl
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

कुछ तो समझो समय की हरकत,
आज रुकोगे तो कल संभलोगेl
खुद को सुरक्षित आज रखा तो,
कल दोस्तों की जमातें होंगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत `कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

जैसे समय यह रुक-सा गया है,
मातमी सन्नाटा पसरा है।
मृत्यु का डर तो सबको लगता,
पार कसौटी समझाते होगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

आज समय कुछ ऐसा चला है,
आदमी-आदमी से डरने लगा है।
आज का डर भी जायज लगता,
कल फिर से मुलाकातें होंगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

एक गलती से आफत आई,
मिलकर चलो अब इसे भगाएं।
काम आज तुम ऐसा करो ना,
गहरी खताएं बताते होंगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

भागदौड़ से फुर्सत मिली है,
घर का चलो कोई कोना सजाएं।
घर-परिवार के साथ रहे तो,
दो सुख-दुख की बातें होंगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

खेल मौत का आप रुकेगा,
इक दिन ‘कोरोना’ हमसे डरेगा।
`डी. कुमार` की एक दुआ बस,
मानवी सुबहें फिर सुहाते होंगी।
खुशियों की बिसातें होंगी,
रौनकें हर अहाते होंगी।
अंत ‘कोरोना’ का भी निश्चित,
गुजरे जमाने की बातें होंगीll

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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