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आओ दीप जलाएँ हम

सुरेश चन्द्र सर्वहारा
कोटा(राजस्थान)
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रात अमावस की अँधियारी
आओ दीप जलाएँ हम,
इन दीपों से तनिक भगा दें-
बाहर भीतर पसरा तम।

पर बाहर के दीप जले जो
जीवन इनका कितना कम,
चुकने के ही साथ तेल के-
खो बैठेंगे ये दमखम।

झिलमिल करती बाती की लौ
कुछ पल जलकर जाती थम,
और दीप भी बुझ जाता है-
पथ-दर्शन का निभा धरम।

जीवन में भी साथ खुशी के
छाया बनकर चलते गम,
कभी मिलन खुशियाँ देता है-
कभी विरह से आँखें नम।

तन के दीपक में साँसों का
तेल रीतता रहता हरदम,
ऐसे में प्राणों की बाती-
लहराए कब तक परचम।

मन का दीप जलाना ही है
इस जीवन का लक्ष्य परमl
तब होगा हर दिन ही अपना-
दीवाली के उत्सव समll

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैL जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैL आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैL प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंL आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैL

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