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चलें गाँव की ओर…

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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याद आ रही चौपालों की,
फूल भरे पेड़ों डालों की
गोरी के प्यारे पनघट की,
यौवन के मधुर जमघट की
गोधूलि की सुंदर बेला की,
टीलों पर सजते मेला की
हरिया के हरे-हरे खेतों की,
लकड़ी बाँस और बेतों की।
माता की छोटी मढ़िया की,
गोलू-छोटू और गुड़िया की
सने धूल से नौनिहालों की,
श्याम वर्ण सूखे गालों की।
मस्जिद की हरी मीनारों की,
शिवलिंग से बहते धारों की
कलुआ की बूढ़ी दाई की,
मुन्नू की गोरी भौजाई की।
गोबर से बनते कंडों की,
गैंड़ी से चलते डंडों की
नित दिन रंभाती गायों की,
पेड़ के गहराते सायों की।
आले में जलती ढिबरी की,
हांडी में बनती खिचड़ी की
नदी-नाले और तालाबों की,
धूमिल हो चुके ख़्वाबों की।
चलो मोड़ दें उन पाँवों को,
छोड़ आए थे जो गाँवों को॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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