शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…
फागुन मास बड़ा प्रिय लगता होती रंगों की बौछार,
इक-दूजे को रंग लगाने से बढ़ता है द्विगुणित प्यार।
भेदभाव अरु छुआछूत को आज भूल सब जाते हैं,
छोटा-बड़ा नहीं है कोई,मिल कर खुशी मनाते हैं।
काले पीले लाल गुलाबी रंग लिए गुब्बारों में,
बच्चे रंग उड़ाते फिरते गाँव गली चौबारों में।
कितना पावन पर्व होलिका बैर दहन कर देता है,
छोड़ दुश्मनी दुश्मन को भी बाँहों में भर लेता है।
मल कर चेहरे पर गुलाल वो दिल को भी रंग देता है,
मानव के सूखे जीवन में कितने रंग भर देता है।
जीवन में यदि रंग नहीं हो मरूभूमि-सा लगता है,
जिस जीवन में रंग हो,वहीं प्यार का सोता बहता है।
जीवन और रंग का रिश्ता जन्म-जन्म का होता है,
रंग बिना जीवन नीरस वो पतझड़ जैसा होता है।
फागुन का ये मस्त महीना वर्ष बाद में आता है,
ढोल-नगाड़े नाच-गान संग ढेरों खुशियाँ लाता है।
फागुन ही वो मास है जिसमें रंगों की बौछार उड़े,
नाच रंग की महफ़िल सजती लोग देखते खड़े-खड़े।
अच्छाई भारी पड़ती है सदा बुराई पर समझो,
ये आध्यात्मिक पर्व हमारा आदिकाल से है समझो।
आदिकाल से रंग और फागुन का रिश्ता बना हुआ,
प्रेम-प्यार के रंगों से है यही हमेशा सना हुआ॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है