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संतुलन-संयम से ही जीवन सुखद

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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आजकल मानसिक संतुलन न होने के कारण लोग छोटी-छोटी बातों में बहुत बड़ी घटनाओं को अंजाम दे देते हैं,अब लोगों में सहनशीलता का अभाव होने से हत्या-आत्महत्या करना आम बात होती जा रही है। गत दिनों एक घटना सामने आई,जिसमें एक युवा ने प्रेम विवाह ३ माह पूर्व किया और अपने परिवार से अलग पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे। अचानक कुछ बात पर युवा ने अपनी पत्नी की कुत्ते को बांधने वाली चेन से गला दबा कर चाकू से हत्या कर दी, और स्वयं अपने पिता और बहू को लेकर थाने गए। ३ माह की शादी में ऐसी कौन-सी इतनी गंभीर बात हो गई कि इतना घातक कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा।

पहले और आज भी पूरी जिंदगी साथ बिताने वाले ५०-६० से भी अधिक आयु का होने पर साथ रह रहे हैं। इस सम्बन्ध में एक बात कि,पहले शादी होती थी फिर प्रेम,पर आज पहले प्रेम और उसके बाद शादी। प्रेम का आकर्षण अस्थाई होता है। शुरुआत में प्रेम अंधा होता है। उस समय सब समर्पण भाव रखते हैं। कुछ दिन में शारीरिक आकर्षण खत्म होने पर मानसिक,आर्थिक
प्रतिष्ठा में अंतर्द्वंद शुरू होता है। युवा और अनुभवहीनता के कारण उत्तेजना होना लाज़िमी है। सबके अहम टकराते हैं,कोई किसी से कम नहीं होना चाहता,इसका मुख्य कारण धर्म से दूर रहना और किसी गुरु से नियमबद्ध न होना है।
प्रेम कुछ शर्तों पर होता है,जबकि शादी संतुलन पर आधारित है। एक-दूसरे की बात का आदर करना सीखना चाहिए। आज पुरुष और नारी में समानता है,पर कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं जहाँ पुरुष उम्र और अनुभव होने के कारण उसकी बात का आदर दें और बातों को सुनकर सहनशीलता से उस समय को काट लें।
ध्यान दीजिए कि,२ मनुष्यों की विचार धाराएं कभी एक नहीं हो सकती हैं, विपरीत ध्रुव होते हैं,उनमें पटरी बिठाना पड़ती हैं।,सम्मान दें,अनुभव को महत्व दें,पर बराबरी के अधिकार के कारण हम किसी से कम नहीं होने से विवाद का रूप किस दिशा में ले जाए,कुछ नहीं कहा जा सकता है।
कुछ घटनाओं के पीछे ‘लव जिहाद’ के अलावा तामसिक भोजन,मोबाइल द्वारा अनैतिक दृश्यों को देखना एवं काम जन्य रोगों से पीड़ित होना है। आहार,संस्कार वातावरण,परिजन और परिवेश का बहुत प्रभाव पड़ता है। ये सब भौतिक सुख क्षणिक होते हैं और इनका प्रतिफल जिंदगी भर भोगना पड़ता है। संतुलन,संयम,विवेक का हमेशा ध्यान रखें,तभी जीवन सुखद होगा। इसके लिए सात्विक आहार,संयमित धार्मिक जीवन-शैली का होना बहुत आवश्यक है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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