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महाराणा और अकबर बनाम `महाभारत`

डॉ.पूर्णिमा मंडलोई
इंदौर(मध्यप्रदेश)

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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….


महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच `हल्दी घाटी` का युद्ध कौरव और पांडवों के बीच `महाभारत` युद्ध की तरह ही विनाशकारी सिद्ध हुआ। इन दोनों ही युद्ध में बहुत सी समानताएं थीं,जैसे-मुगलों के पास कौरव के समान सैन्य शक्ति अधिक थी,तो महाराणा प्रताप के पास पांडवों जैसी जुझारू शक्ति थी। कौरव और पांडवों की सेना में बहुत बड़ा अंतर था। पांडवों के समर्थन में युद्ध के लिए तैयार सेना की कुल संख्या ७ अक्षौहिणी थी,जबकि कौरव पक्ष में ११ अक्षौहिणी विशाल सेना थी। उसी प्रकार महाराणा प्रताप के पास सिर्फ २० हजार सैनिक थे और अकबर के पास ८५ हजार सैनिक थे,जो कौरव और पांडव की सेना के समान अंतर था। जिस प्रकार महाभारत युद्ध नहीं हो,इसके लिए पांडवों की और से शांति दूत भेजे गए थे। उसी प्रकार अकबर ने भी महाराणा प्रताप को समझाने के लिए कई शांतिदूत भेजे,जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके। पांडवों की तरह ही महाराणा प्रताप भी जितने बहादुर थे,उतने ही दरिया दिल और न्याय प्रिय भी थे। जिस प्रकार कौरव पांडवों के प्रताप,गुण,उनकी बहादुरी और चरित्र को भली-भांति जानते थे। उसी प्रकार अकबर भी ह्रदय से महाराणा प्रताप के गुणों,बहादुरी और चरित्र का बहुत बड़ा प्रशंसक था। पांडवों में से अर्जुन को राजनीतिक वजह से कई शादियां करनी पड़ी थी। उसी प्रकार महाराणा प्रताप ने भी राजनीतिक कारणों से ११ शादियां की थी।
कौरव और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध में जो भी योद्धा वीरगति को प्राप्त होता उसके मरणोपरांत दोनों ही पक्ष बहुत दुखी होते,और उस वीर योद्धा को श्रद्धांजलि देते थे। उसी प्रकार मुगल शासक अकबर भी महाराणा प्रताप की मृत्यु के उपरांत बहुत दुखी हुआ था।
महाभारत युद्ध और हल्दीघाटी युद्ध दोनों ही युद्ध बहुत ही विनाशकारी सिद्ध हुए। इसमें दोनों ही पक्षों ने बहुत कुछ खोया,दोनों ही पक्षों की हार ही हुई, क्योंकि जो जीता उसने भी बहुत कुछ खोया था। इसलिए,उपरोक्त समानताओं को देखते हुए महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दी घाटी युद्ध को महाभारत युद्ध की संज्ञा दी जा सकती है।

परिचय–डॉ.पूर्णिमा मण्डलोई का जन्म १० जून १९६७ को हुआ है। आपने एम.एस.सी.(प्राणी शास्त्र),एम.ए.(हिन्दी), एम.एड. करने के बाद पी.एच-डी. की उपाधि(शिक्षा) प्राप्त की है। वर्तमान में डॉ.मण्डलोई मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित सुखलिया में निवासरत हैं। आपने १९९२ से शिक्षा विभाग में व्याख्याता के पद पर लगातार अध्यापन कार्य करते हुए विद्यार्थियों को पाठय सहगामी गतिविधियों में मार्गदर्शन देकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाई है। विज्ञान विषय पर अनेक कार्यशाला-प्रतियोगिताओं में सहभागिता करके पुरस्कार प्राप्त किए हैं। २०१० में राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान(जबलपुर) एवं मध्यप्रदेश विज्ञान परिषद(भोपाल) द्वारा विज्ञान नवाचार पुरस्कार एवं २५ हजार की राशि से आपको सम्मानित किया गया हैl वर्तमान में आप जिला शिक्षा केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर सहायक परियोजना समन्वयक के रुप में सेवाएं दे रही हैंl कई वर्ष से लेखन कार्य के चलते विद्यालय सहित अन्य तथा शोध संबधी पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविता प्रकाशित हो रहे हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य अपने लेखन कार्य से समाज में जन-जन तक अपनी बात को पहुंचाकर परिवर्तन लाना है।

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