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खूब सजी ‘ग़ज़लों की महफ़िल’:डाॅ विनोद ने शायरी से बाँधा समां

दिल्ली।

साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में लगी संस्था ‘पंकज-गोष्ठी ने क्रियाशीलता को बरकरार रखते हुए ग़ज़लों की महफ़िल (दिल्ली) श्रृंखला के दूसरे चरण में २५ अगस्त मंगलवार की शाम को महफ़िल की १४ वीं सजीव प्रस्तुति सजाई। इसमें अपनी बेहतरीन ग़ज़लें पढ़कर सुकंठ शायर व पूर्व आयकर आयुक्त डाॅ. बिनोद सिन्हा ने सबका दिल जीत लिया। डाॅ. विनोद ने शायरी से ऐसा समां बाँधा कि, श्रोता मंत्र मुग्ध हुए बिना नहीं रह सके।
पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजीकृत)के तत्वावधान में चलने वाली साहित्यिक संस्था ‘गजलों की महफ़िल’ भी लगातार ऑन लाइन मुशायरों एवं सजीव कार्यक्रम कर रही है। इसी के अन्तर्गत यह प्रस्तुति हुई। न्यास के अध्यक्ष डाॅ. विश्वनाथ झा ने बताया कि,ग़ज़लों की महफ़िल में शायरों के अलावा ग़ज़ल गायकों को भी सप्ताह में एक दिन आमंत्रित करते हैं, उसी क्रम में मंगलवार की शाम ४ बजे से महफ़िल में डाॅ. सिन्हा ने लगभग सवा घंटे तक एक से बढ़कर एक बेहतरीन ग़ज़लें तरन्नुम में सुनाई। जब उन्होंने अपनी ग़ज़ल-
‘हाँ दुआएँ कभी नहीं मरतीं,
जैसे माएँ कभी नहीं मरतीं।
डोर साँसों की टूट भी जाए,
ये हवाएं कभी नहीं मरतीं।’ सुनाई तो तो सबके मुँह से वाह-वाह निकलने लगी।
फिर बिनोद सिन्हा ने-
‘जुगाड़ जीत ही जाता है हर ज़माने में
जहाँ ज़रूरी हो क़िस्मत वहीं नहीं होती।’ से भी खूब तालियाँ बटोरीं।आपने इसके बाद और भी ग़ज़ल सुनाकर सबको आनंदित किया,जिसमें भारत-पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक साझीदारी लेकिन राजनीतिक और सैनिक टकराहट के बीच फँसी आम जनता की बेबसी का चित्रण करती ग़ज़ल भी रही।
कार्यक्रम के संयोजक और महफ़िल प्रशासक डाॅ. अमर पंकज ने सभी साथियों डाॅ. दिव्या जैन,डाॅ. यास्मीन मूमल,श्रीमती रेणु त्रिवेदी, अनिल कुमार शर्मा ‘चिंतित’,पंकज त्यागी ‘असीम’ और डाॅ. पंकज कुमार सोनी के प्रति भी आभार प्रकट किया।

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