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‘मकर संक्रांति’-वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विशेष पर्व

दिपाली अरुण गुंड
मुंबई(महाराष्ट्र)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….


भारत कृषि प्रधान देश है,इसलिए भारत में मनाए जाने वाले ज्यादातर त्योहार इसी पर आधारित हैं। इनमें से एक है ‘मकर संक्रांति।’ ‘मकर’ का अर्थ है ‘सूर्य’ एवं ‘संक्रांति’ का अर्थ है ‘संक्रमण।’ सूर्य के ‘उत्तरायण’ की यह शुरुआत होती है। महाराष्ट्र में इसे ‘संक्रांत’,पंजाब में ‘लोहड़ी’ तथा तमिलनाडु में ‘पोंगल’ कहते हैं।
‘पोंगल’ उत्सव में तमिलनाडु के किसान घर के आँगन में मिट्टी के बर्तन में चूल्हे पर खेत में उगे नए अनाज की खीर पकाते हैं। पंजाब में ‘लोहड़ी’ में संक्रांति के एक दिन पहले रात को लकड़ियों से अग्नि जलाकर नया अनाज अर्पण किया जाता है। तिल-गुड़,सरसों का साग,मक्के की रोटी आदि पकवान भी बनाए जाते हैं। गुजरात में संक्रांति के दिन पतंग हवा में उड़ा कर इस उत्सव का आनंद लेते हैं।
महाराष्ट्र में तो इसके अलग तेवर हैं। संक्रांति के पहले एक दिन ‘भोगी’ के रूप में मनाया जाता है,जिसमें उस मौसम में मिलने वाली सारी सब्जियों की मिश्रित सब्जी तथा बाजरे की रोटी,जिसमें तिल लगाए हों वह खाते हैं। दूसरे दिन संक्रांति में पूरनपोली बनाई जाती है। तिल-गुड़ के लड्डू बाँटकर गुड़ की मिठास लोगों की बातों में आए,ऐसी शुभ कामना की जाती है।
इस तरह भारत के विभिन्न राज्यों में विविधता से संक्रांति मनाई जाती है। सभी राज्यों की परम्परा भले ही पुरानी या अलग-अलग हो,लेकिन उसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी छिपा हुआ दिखाई देता है। संक्रांति में ठंड का मौसम होता है,चारों तरफ पूरे भारत भर में ठंडी हवाएँ बहती हैं,ऐसे में शरीर को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है,इसलिए इन दिनों लोग तिल-गुड़,बाजरा,मक्का, इस तरह के शरीर को अधिक ऊर्जा देने वाले व्यंजनों का अपने खाने में प्रयोग करते हैं। भारत में सारे उत्सवों के पीछे हमें इसी तरह के वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिलेंगे,जिन्हें सही मायने में अगर हम समझने लगेंगे,तभी हमारे सारे उत्सव ‘पर्व’ में बदल जाएंगे।

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