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अनेक नाम और एकता का पर्व ‘मकर संक्रांति’

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

अधिकतर लोग जानते ही होंगे कि १४ जनवरी को मनाया जाने वाला मकर संक्रांति पर्व कभी-कभी एक दिन पहले या बाद में भी मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो भारत के विभिन्न प्रान्तों में,विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। यानि किसी भी अन्य पर्व में इतने अधिक रूप प्रचलित नहीं हैं, जितने इसको मनाने के हैं। सभी प्रान्तों में मकर संक्रांति वाले दिन उस जगह प्रचलित धार्मिक क्रियाकलाप जैसे जप,तप,दान,स्नान,श्राद्ध,तर्पण वगैरह ही होता है। कहीं-कहीं लोग पतंग भी उड़ाते हैं।
छत्तीसगढ़,गोआ,ओडिशा,हरियाणा,बिहार,केरल, झारखण्ड,आंध्र प्रदेश,तेलंगाना,कर्नाटक,मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र,मणिपुर,राजस्थान,सिक्किम,उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड,पश्चिम बंगाल,गुजरात और जम्मू में इसे मकर संक्रान्ति तो कहते ही हैं,लेकिन कुछ प्रान्तों में अन्य नाम से भी जाना जाता है। जैसे हरियाणा,हिमाचल प्रदेश,पंजाब में माघी तो तमिलनाडु में ताइ पोंगल,उझवर,तिरुनल कहते हैं। गुजरात व उत्तराखण्ड में उत्तरायण,असम में भोगाली बिहु,कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रात,उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में खिचड़ी,पश्चिम बंगाल में पौष संक्रान्ति सहित कर्नाटक में मकर संक्रमण और पंजाब में लोहड़ी कहते हैं।
विश्व के अन्य भागों में भी यह पर्व मनाय़ा जाता है। बांग्लादेश में संक्रेन,पौष संक्रान्ति,नेपाल में माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’ या ‘खिचड़ी संक्रान्ति ,थाईलैण्ड में सोंगकरन,लाओस में पिमा लाओ, म्यांमार में थिंयान,कम्बोडिया में मोहा संगक्रान एवं श्रीलंका में पोंगल नाम से,भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ बड़े ही धूम-धाम इसे मनाया जाता है।
सनातन धर्मानुसार हर माह के २ भाग हैं- ?कृष्ण और शुक्ल पक्ष,जो चन्द्र के आधार पर हैं। ठीक इसी प्रकार सूर्य के आधारानुसार हर वर्ष के भी २ भाग होते हैं,जिसे उत्तरायन और दक्षिणायन मानते हैं। मकर संक्रांति वाले दिन से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर हो जाता है,जिसे सोम्यायन भी कह सकते हैं। परिणामस्वरुप सूर्य भगवन उत्तर दिशा से उदय होते हैं। इसलिए ही मकर संक्रांति से यानि माघ मास से प्रारम्भ होने वाले उत्तरायन में सभी प्रकार के शुभ कार्य प्रारम्भ हो जाते हैं।
यह ऐतिहासिक तथ्‍य है कि प्रभु श्री कृष्ण ने गीता में उत्तरायन का महत्व समझाते हुए बताया कि,इस समय में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता,ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसी उपदेशानुसार बाणों की शय्या पर पड़े भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति वाले दिन ही अपना नश्वर शरीर सूर्य उत्तरायन होने के बाद इच्छा मृत्यु वरदानुसार स्वेच्छा से परित्याग किया था।
यह भी ऐतिहासिक तथ्‍य है कि मकर संक्रांति के ही दिन माता गंगा महाराज भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से गुजरते हुए सागर में समा गई थी, लेकिन उसके पहले माता ने महाराज भगीरथ द्वारा जो अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया,उसे स्वीकार किया था। इसी कारण से मकर संक्रांति पर तर्पण प्रथा है,और हर साल मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला भी लगता है। कुम्भ के पहले स्नान की शुरुआत भी मकर संक्रांति से होती है।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन से ही जलाशयों में वाष्पन क्रिया शुरू होने लगती है,जिसमें स्नान करने से स्फूर्ति व ऊर्जा का संचार होता है। इसके अलावा इस दिन गुड़ व तिल खाने से शरीर को उष्णता व शक्ति मिलती है,और खिचड़ी खाने से प्रतिरोधात्मक शक्ति भी बढ़ती है।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मकर संक्रांति वाला पर्व एकता में अनेकता को प्रदर्शित करता है। इसके अलावा आज के अंकीय समय में होली, दीपावली वगैरह त्यौहारों की तरह मकर संक्रांति त्यौहार से सम्बन्धित बधाई सन्देश कार्ड,ईमेल एवं सामाजिक संचार माध्यम से आदान-प्रदान कर इस त्यौहार को बहुत ही प्रभावी भी बनाता है।

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