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मानवता की प्रेरणा देते भगवान महावीर

 

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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प्रतिवर्ष दीपावली के दिन जैन धर्म में दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। कार्तिक अमावस्या के दिन भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
भगवान महावीर का जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनका जीवन ही सत्य,अहिंसा और मानवता का संदेश है। उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य,संपदा की कोई कमी नहीं थी। राजा के परिवार में पैदा होते हुए भी उन्होंने ऐश्वर्य और धन- संपदा का उपभोग नहीं किया। युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह और राज्य को छोड़कर अनंत यातनाओं को सहन किया और सारी सुख-सुविधाओं का मोह छोड़कर नंगे पैर पदयात्रा करते रहे। महावीर ने अपने जीवन काल में अहिंसा के उपदेश प्रसा‍रित किए। उनके उपदेश इतने आसान हैं कि,उनको जानने-समझने के लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्‍यकता नहीं।
सह-अस्तित्व का सिद्धांत है जीयो और जीने दो…। जो लोग यह सोचते हैं कि हम दूसरे का अस्तित्व मिटाकर ही सुखी रह सकते हैं या अपनी सत्ता कायम कर सकते हैं,वे जरा इतिहास में झाँककर देखें। हिंसक समाज अपना अस्तित्व स्वयं खो बैठता है। जब एक नहीं रहेगा तो दूसरा भी नहीं रहेगा। सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं। धरती पर वृक्ष नहीं रहेंगे तो बाकी और किसी के बचने की कल्पना नहीं की जा सकती। एक ओर जहाँ धर्म,समाज, साम्यवाद और राष्ट्रों द्वारा की जा रही हिंसा-प्रतिहिंसा से मानव भयग्रस्त हो चला है,वहीं धरती के पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुँचाकर मानव और धरती की सेहत पर भी अब ग्रहण लग गया है। जबसे धर्म और साम्यवाद का अविष्कार हुआ, मनुष्य तो लुप्त हो ही गया है। इस तथाकथित मनुष्य ने वृक्ष,पशु,मछली और पक्षियों की कई प्रजातियों को भी लुप्त कर दिया है। कई पहाड़ और नदियाँ लुप्त हो गए हैं। धरती का तापमान बढ़ गया है,मौसम अब पहले जैसा नहीं रहा।
मानवता और पर्यावरण के साथ लगातार किए जा रहे खिलवाड़ के दौर में यदि महावीर और महापुरुषों के दर्शन के महत्व को नहीं समझा गया तो सभी को महाविनाश के लिए तैयार रहना चाहिए। मानव समाज इस समय एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है,जहाँ से उसे तय करना है कि धार्मिक कट्टरता, साम्यवादी जुनून और पूँजीवादियों के शोषण के मार्ग पर ही चलते रहना है या फिर ऐसा मार्ग तलाश करना है,जो मानव जीवन और पर्यावरण को स्वस्थ,सुंदर और खुशहाल बनाए।
भगवान महावीर ने अपने विचार कभी किसी पर थोपे नहीं,न ही किसी धर्म की स्थापना की। उन्होंने सिर्फ मानवता और पर्यावरण के प्रति लोगों को सचेत और सजग रहने की सलाह दी। अहिंसा विज्ञान को पर्यावरण का विज्ञान भी कहा जाता है। भगवान महावीर मानते थे कि जीव और अजीव की सृष्टि में जो अजीव तत्व हैं,अर्थात मिट्टी,जल,अग्नि, वायु और वनस्पति उन सभी में भी जीव है। अत: इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो। अस्वीकार करने का मतलब है अपने अस्तित्व को अस्वीकार करना।
जैन धर्म में चैत्य वृक्षों या वनस्थली की परम्परा रही है। चेतना जागरण में पीपल,अशोक,बरगद आदि वृक्षों का विशेष योगदान रहता है। यह वृक्ष भरपूर ऑक्सीजन देकर व्यक्ति की चेतना को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसीलिए इस तरह के सभी वृक्षों के आसपास चबूतरा बनाकर उन्हें सुरक्षित कर दिया जाता था और जहाँ व्यक्ति सिर्फ बैठकर ही शांति का अनुभव कर सकता है।
जैन धर्म ने सर्वाधिक पौधों को अपनाए जाने का संदेश दिया है। सभी २४ तीर्थंकरों के अलग-अलग २४ पौधे हैं। बुद्ध और महावीर सहित अनेक महापुरुषों ने इन वृक्षों के नीचे बैठकर ही निर्वाण या मोक्ष को पाया।
पर्यावरण की तरह ही जैन धर्म में क्षमा का बहुत महत्व है। मानवता को जिंदा रखना है तो क्षमा के महत्व को समझना होगा। मनुष्य को धर्म, जाति,समाज और नस्ल के नाम पर बाँटकर रखा गया है। इसके चलते आज के दौर में मानवता को बचाना सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। प्रत्येक व्यक्ति, समाज,संगठन और राष्ट्र में अहंकार तत्व बढ़ गया है,कोई किसी को क्षमा नहीं करना चाहता। यदि किसी वृक्ष,नदी,पहाड़,समुद्र और मानव के प्रति जाने-अनजाने कोई हिंसा या अपराध किया है तो मैं कहना चाहूँगा-‘मिच्छामि दुकड़म’ या उत्तम क्षमा।
तीर्थंकर भगवान महावीर ने ईसा पूर्व ५२७,७२ वर्ष की आयु में बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष)प्राप्त किया। पावापुरी में एक जल मंदिर स्थित है,जिसके बारे में कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहाँ से महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
जार्ज बर्नाड शॉ के अनुसार-‘भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत मुझे बहुत प्रिय हैं। मेरी प्रबल अभिलाषा है कि मैं मृत्यु के बाद जैन-धर्मी परिवार में जन्म धारण करूँ।’
आज वर्ष २०२० में कोरोना काल ने भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों ने अपनी सार्थकता स्थापित की,जिसको सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकार किया। अहिंसात्मक जीवन शैली से ही बचाव संभव है। कोविड काल में अपरिग्रह का महत्व रहा है,यानी थोड़े में थोड़े की जरुरत रही।
यह भी सोचना होगा कि अनेकांतवाद को विश्व ने सही ढंग से नहीं अपनाया। यदि अपनाया होता हो आज पूरा विश्व हिंसा,तनाव और हथियारों की होड़ में क्यों लगा है ? हथियारों के उपयोग में होने वाली राशि का उपयोग स्वास्थ्य,शिक्षा,पानी बिजली,सड़क निर्माण में करके शांति,तनावरहित जीवन विश्व जी सकता है। सभी के लिए दीपावली और भगवान महावीर के निर्वाण की मंगल कामना।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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