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माँ बिन…मायका

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मायका…नहीं रह जाता मायका,
माँ के बिना…सूना सब ज़ायक़ा
घर तो बिलकुल वही रहता है,
फिर क्यों सब नया-सा लगता है ??

अजनबी से चेहरे लगते सभी,
प्यार भी लगने लगता दिखावा
भाई-भाभी से रिश्ता पहले सा तो है,
फिर क्यों उनका व्यवहार बदला सा है ??

अब वो पहले सी आवभगत नहीं,
क्या पसंद है…क्या खाएगी बेटी
भाभी ही तो पूछ कर बनाती थी,
फिर क्यों आज ऐसा परायपन है ??

बुआ आई कहकर दौड़ते थे बच्चे,
दादी को बतला कहलाएँगे अच्छे
जल्दी मत जाना कहते थे हमेशा,
फिर क्यों उनके भी रंग बदले हुए हैं ??

सोचती हूँ,पापा कुछ तो बोलेंगे,
शायद बदले हुए माहौल को समझेंगे
पापा के ग़ुस्से से तो सभी डरते थे,
फिर क्यों आज वो चुपचाप देख रहे हैं ??

माँ के न होने से सब-कुछ बदल गया,
जो बड़ा था छोटा और छोटा बड़ा बन गया
माँ ने तो घर को स्वर्ग बना कर रखा था,
फिर क्यों इतनी जल्दी सब बिखर गया ??

अब न माँ रहीं,न रह गया उनका प्यार,
बस आँखों में बहती आँसूओं की धार।
चुप रहो,कहकर बात काट देते थे हम,
फिर क्यों उन्हें सुनने को बेचैन हैं हम ??

परिचय-डॉ. आशा वीरेंद्र कुमार मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘आस’ है। १९६२ में २७ फरवरी को वाराणसी में जन्म हुआ है। वर्तमान में आपका स्थाई निवास मुम्बई (महाराष्ट्र)में है। हिंदी,मराठी, अंग्रेज़ी भाषा की जानकार डॉ. मिश्रा ने एम.ए., एम.एड. सहित पीएच.-डी.(शिक्षा)की शिक्षा हासिल की है। आप सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत बालिका, महिला शिक्षण,स्वास्थ्य शिविर के आयोजन में सक्रियता से कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,कविता एवं लेख है। कई समाचार पत्र में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। सम्मान-पुरस्कार में आपके खाते में राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१२),महापौर पुरस्कार(२००५-बृहन्मुम्बई महानगर पालिका) सहित शिक्षण क्षेत्र में निबंध,वक्तृत्व, गायन,वाद-विवाद आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कार दर्ज हैं। ‘आस’ की विशेष उपलब्धि-पाठ्य पुस्तक मंडल बालभारती (पुणे) महाराष्ट्र में अभ्यास क्रम सदस्य होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों से लोगों को अवगत कराना,वर्तमान विषयों की जानकारी देना,कल्पना शक्ति का विकास करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद जी हैं।
प्रेरणापुंज-स्वप्रेरित हैं,तो विशेषज्ञता-शोध कार्य की है। डॉ. मिश्रा का जीवन लक्ष्य-लोगों को सही कार्य करने के लिए प्रेरित करना,महिला शिक्षण पर विशेष बल,ज्ञानवर्धक जानकारियों का प्रसार व जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा सहज,सरल व अपनत्व से भरी हुई भाषा है।’

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