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लोकतंत्र की हत्या!

लोकतंत्र की हत्या हो गई है,
ये हत्या किसने की
यह प्रश्न लेकर खड़ी है जनता,
न्याय के दरबार में
न्याय भी बिक चुका है,
अन्याय के बाजार में।

हमारा दुर्भाग्य है कि,
हम ढूंढ रहे हैं न्याय
हम ढूंढ रहे हैं सुशासन,
आज-कल ये शब्द बड़े
हल्के लगते हैं क्योंकि-
लोकतंत्र की हत्या के साथ ही,
हत्या हो गई है
न्याय की और सुशासन की॥

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