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मेरे पापा

रेणु झा ‘रेणुका’
राँची(झारखंड)
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पापा मैं आप-सी बनना चाहती हूँ,
सबका भार उठाए
पीड़ा अंदर दबाए,
चेहरे पर मुस्कान सजाए
सबकी इच्छा पूरी करते,
खुद के लिए कहां सोचते
इतनी उर्जा कहां से लाते हो पापा!
मैं उसे जीना चाहती हूँ,
पापा मैं आप-सी बनना चाहती हूँll

छोटे-छोटे खर्चे बचाना
पंखा,लाइट बुझाना,
पुरानी चीजें नई बनाना
हमारी शिकायतें सुलझाना,
इतना धैर्य कहां से लाते हो पापा!
मैं उसे जीना चाहती हूँ,
पापा मैं आप-सी बनना चाहती हूँll

हमारा हौंसला,विश्वास,
त्यौहार का उल्लास
बड़ों के आदर की चादर,
सम्हाले रखना
दु:ख में भी स्तम्भ बने रहना,
हमारे कल के लिए तत्पर रहना
खामोशी से बातें टालना,
इतनी आत्मीयता कहां से लाते हो पापा!
मैं उसे जीना चाहती हूँ,
मेरे पापा,मैं आप-सी बनना चाहती हूँll

परिचय-रेणु झा का निवास झारखंड राज्य के राँची जिले में स्थाई रूप से है। साहित्यिक उपनाम ‘रेणुका’ लिखने वाली रेणु झा की जन्म तारीख ५ सितम्बर १९६२ एवं जन्म स्थान-राँची है। हिंदी,अंग्रेजी और मैथिली भाषा का ज्ञान रखने वाली रेणुका की पूर्ण शिक्षा-एम ए. और बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक),समाजसेवा एवं साहित्य सेवा का है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत नि:शुल्क शिक्षा देने सहित विविध सामाजिक कार्य भी करती हैं। इनकी लेखन विधा-लेख,गीत तथा कविता है। कईं पत्र- पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होने का सिलसिला जारी है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में विशेष रूप से मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित हैं तो अन्य मंचों से कईं साहित्यिक सम्मान मिले हैं। विशेष उपलब्धि-सामाजिक समस्याओं पर लेखन में दैनिक समाचार-पत्र से सम्मानित किया गया है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समस्याओं का निदान,लोगों में जागरूकता लाना और हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-श्री प्रेमचंद,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और हरिवंशराय बच्चन हैं। प्रेरणापुंज-माँ है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“मेरा देश विश्व गुरु हो,यही कामना है। हिंदी भाषा देश के हर क्षेत्र,राज्य में बोली और लिखी जाए।”

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