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नारी तू दुर्गा बन

डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कब अपनी आँखें खोलोगे,
मुख से अपने कब बोलोगे
कब तक क्रंदन करे द्रौपदी,
शेषनाग तुम कब डोलोगे ?

क्या नारी का भाग्य यही है,
कुंकुम का सौभाग्य यही है
ओढ़ दुशाला बने बैरागी,
जीवन का वैराग्य यही है ?

डर लगता जाने में मन्दिर,
छुपा है क्या किसके अंदर
कहाँ मिलेगा न्याय प्रभु अब,
भगवन भी हो गए हैं पत्थर।

हे नारी इसमें तेरा ही दोष है,
ताकत की सत्ता का उद्घोष है
नहीं होगी कहीं तेरी सुनवाई,
पुरुष तो हमेशा से निर्दोष है!

अब तुमको ही लेना प्रतिकार,
है वीरांगना का लेना अवतार।
फिर एक बार माँ दुर्गा बनकर,
कर दो शक्ति की जय-जयकार॥

परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।

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